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तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा ने हिमाचल के धर्मशाला में मनाया अपना 88वां जन्मदिन

© AP Photo / Ashwini BhatiaTibetan spiritual leader the Dalai Lama
Tibetan spiritual leader the Dalai Lama - Sputnik भारत, 1920, 06.07.2023
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आध्यात्मिक नेता दलाई लामा को 13वें दलाई लामा थुबटेन ग्यात्सो की कुछ वस्तुओं की पहचान करने के बाद उनके पुनर्जन्म के रूप में पहचाना गया था।
तिब्बतियों में ग्यालवे रिनपोछे के नाम से जाने जाने वाले 14वें दलाई लामा का 88वां जन्मदिन के मौके पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में हजारों तिब्बती निर्वासितों, विश्वासियों और अनुयायियों ने दुनिया भर में अलग अलग समारोहों में भाग लिया।
14वें दलाई लामा ने अपने जन्मदिन के मौके पर एक संदेश जारी कर कहा कि उनका जीवन सभी प्राणियों की मदद के लिए समर्पित है।
"अपनी ओर से, मैं अपना यह जीवन अपनी सर्वोत्तम क्षमता से असीमित संवेदनशील प्राणियों की मदद करने के लिए समर्पित करता हूं। मैं दूसरों को जितना हो सके उतना लाभ पहुंचाने के लिए दृढ़ संकल्पित हूं," तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने अपने जन्मदिन के संदेश में कहा। 
दलाई लामा को तिब्बतियों द्वारा जीवित देवता के रूप में पूजे जाने पर भी आध्यात्मिक गुरु ने टिप्पणी की।
"मैं आपसे एक साहसी संकल्प अपनाने का आग्रह करता हूं जैसा कि मैंने, आपके मित्र ने किया है। मेरे आध्यात्मिक मित्रों, कृपया मेरे विचारों को समर्थन दें। आपने अब तक जो किया वह सही था - यह सही काम था," 14वें दलाई लामा ने अपने संदेश में कहा। 
14वें दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई 1935 को उत्तर पूर्वी तिब्बत में अमदो प्रांत के तख्त शेर की एक छोटी सी बस्ती के एक किसान परिवार में हुआ था। पहले उनका नाम ल्हामो धोंदुप था, उन्हें 1937 में दो साल की उम्र में ही 13वें दलाई लामा, थुबटेन ग्यात्सो के पुनर्जन्म के रूप में पहचाना गया था। 1959 में तिब्बत में अस्थिरता की वजह से दलाई लामा और 80,000 से अधिक तिब्बतियों को भारत और पड़ोसी देशों में निर्वासन के लिए मजबूर होना पड़ा।
दलाई लामा अपनी तीन सप्ताह की खतरनाक यात्रा के बाद भारत पहुंचे और सबसे पहले उन्होंने लगभग एक साल तक उत्तराखंड के मसूरी में निवास किया था। 10 मार्च, 1960 को वे भारत के राज्य हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला चले गए और तब से वे वहां रह रहे हैं, जो निर्वासित तिब्बती प्रतिष्ठान के मुख्यालय के रूप में भी कार्य करती है।
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