भारतीय शास्त्रकारों के अनुसार जीवन का मुख्य लक्ष्य अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति है वेदों में इन्हें चार पुरूषार्थ, ‘पुरूषार्थचतुष्टय’ कहा गया है। ये चारों एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं तथा मानव जीवन के ये आधार स्तम्भ हैं। इन चारों पुरुषार्थों में चारों का महत्व बराबर है क्योंकि चारों एक-दूसरे के पूरक हैं। वस्तुतः उन्हें चार न कहकर एक ही कहा जा सकता है क्योंकि वे एक ही सत्य के चार अंग हैं। आचार्य रजनीश के अनुसार अर्थ और काम पदार्थवाद के हिस्से है और धर्म तथा मोक्ष अध्यात्मवाद के हिस्से हैं, चारों ही बराबर महत्वपूर्ण हैं। जैसे, मंदिर निर्माण में नींव का पत्थर, मंदिर की दीवारें, गुम्बद रूपी मंदिर की छत और कलश, मंदिर के इन चार हिस्सों में सभी का अपना महत्व है। ऊपरी तौर पर देखा जाए तो लगेगा कि मंदिर का स्वर्ण कलश ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण है किन्तु नींव, दीवार और गुम्बद के बिना मंदिर के अस्तित्व की परिकल्पना नहीं की जा सकती। वैसे तो नींव के पत्थर दिखाई नहीं देते मगर उनके योगदान के बिना मंदिर निर्मित ही नहीं हो सकता है। इसी प्रकार से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चारों मिलकर चतुर्विध पुरुषार्थ कहलाते हैं।
जन्मकुण्डली के अलग-अलग भावों से भिन्न-भिन्न पुरुषार्थों का विचार - ज्योतिष शास्त्र भाग्य के साथ-साथ कर्म का विज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र सही दिशा में कर्म करने की प्रेरणा देता है। जन्मकुण्डली के अलग-अलग भावों से भिन्न-भिन्न पुरुषार्थों का विचार किया जाता है। जन्मकुण्डली में बारह भाव होते हैं और इन बारह भावों में जन्म से लेकर मोक्ष तक सभी कर्म निहित हैं। ज्योतिष शास्त्र के आधारभूत नियम एवं सिद्धांत, पुरुषार्थ चतुष्टय पर आधारित हैं। ज्योतिष का फलित, जातक पक्ष मनुष्य के कर्म और फल की ही विवेचना करता है इसलिए पुरुषार्थ चतुष्टय की व्याख्या ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से पूर्ण रूप से समझी जा सकती है। सूक्ष्मता से विचार करने पर अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष रूपी चतुर्थ पुरुषार्थ जन्मकुण्डली में स्थित त्रिकोणों के चार समूह से अभिव्यक्त होते हैं।
परम लक्ष्य मोक्ष - चारों पुरूषार्थ में केवल अर्थ अर्थात् धन नामक पुरूषार्थ पर ही केन्द्रित न रहकर मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना आवश्यक है, इसलिए मोक्ष रूपी पुरूषार्थ के तीन अंग क्रमशः अर्थ, धर्म और काम को त्रिवर्ग पुरुषार्थ की श्रेणी में रखा गया है जिसमें धर्म पुरूषार्थ पर सबसे अधिक जोर दिया गया है, अर्थ पुरुषार्थ पर उससे कम और काम पुरुषार्थ पर सबसे कम। धर्म, अर्थ तथा काम, ये तीनों पुरूषार्थ मोक्ष प्राप्ति के साधन हैं। त्रिवर्ग पुरुषार्थ पृथ्वी पर मनुष्य के द्वारा की जाने वाली क्रियाएं हैं और मोक्ष इन तीनों क्रियाओं का प्रतिफल है। धर्म शास्त्रों के अनुसार अर्थ, धर्म, काम त्रिवर्ग कर्तव्यों के पूर्ण होने के पश्चात् मनुष्य को सद्गति एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्ष ही भारतीय अवधारणा में परम पुरुषार्थ है। अगर मनुष्य ने मोक्ष प्राप्त कर लिया तो वह जन्म मरण के चक्र से मुक्त होकर ब्रह्म में लीन हो जाता है।
जन्मकुण्डली के अलग-अलग भावों से भिन्न-भिन्न पुरुषार्थों का विचार - ज्योतिष शास्त्र भाग्य के साथ-साथ कर्म का विज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र सही दिशा में कर्म करने की प्रेरणा देता है। जन्मकुण्डली के अलग-अलग भावों से भिन्न-भिन्न पुरुषार्थों का विचार किया जाता है। जन्मकुण्डली में बारह भाव होते हैं और इन बारह भावों में जन्म से लेकर मोक्ष तक सभी कर्म निहित हैं। ज्योतिष शास्त्र के आधारभूत नियम एवं सिद्धांत, पुरुषार्थ चतुष्टय पर आधारित हैं। ज्योतिष का फलित, जातक पक्ष मनुष्य के कर्म और फल की ही विवेचना करता है इसलिए पुरुषार्थ चतुष्टय की व्याख्या ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से पूर्ण रूप से समझी जा सकती है। सूक्ष्मता से विचार करने पर अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष रूपी चतुर्थ पुरुषार्थ जन्मकुण्डली में स्थित त्रिकोणों के चार समूह से अभिव्यक्त होते हैं।
- धर्म पुरुषार्थ जन्मकुण्डली के प्रथम भाव, पंचम भाव और नवम भाव
- अर्थ पुरुषार्थ जन्मकुण्डली के द्वितीय भाव, षष्ठ भाव और दशम भाव
- काम पुरुषार्थ जन्मकुण्डली के तृतीय भाव, सप्तम भाव और एकादश भाव
- मोक्ष पुरुषार्थ जन्मकुण्डली के चतुर्थ भाव, अष्टम भाव और द्वादश भाव
परम लक्ष्य मोक्ष - चारों पुरूषार्थ में केवल अर्थ अर्थात् धन नामक पुरूषार्थ पर ही केन्द्रित न रहकर मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना आवश्यक है, इसलिए मोक्ष रूपी पुरूषार्थ के तीन अंग क्रमशः अर्थ, धर्म और काम को त्रिवर्ग पुरुषार्थ की श्रेणी में रखा गया है जिसमें धर्म पुरूषार्थ पर सबसे अधिक जोर दिया गया है, अर्थ पुरुषार्थ पर उससे कम और काम पुरुषार्थ पर सबसे कम। धर्म, अर्थ तथा काम, ये तीनों पुरूषार्थ मोक्ष प्राप्ति के साधन हैं। त्रिवर्ग पुरुषार्थ पृथ्वी पर मनुष्य के द्वारा की जाने वाली क्रियाएं हैं और मोक्ष इन तीनों क्रियाओं का प्रतिफल है। धर्म शास्त्रों के अनुसार अर्थ, धर्म, काम त्रिवर्ग कर्तव्यों के पूर्ण होने के पश्चात् मनुष्य को सद्गति एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्ष ही भारतीय अवधारणा में परम पुरुषार्थ है। अगर मनुष्य ने मोक्ष प्राप्त कर लिया तो वह जन्म मरण के चक्र से मुक्त होकर ब्रह्म में लीन हो जाता है।