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Explainer: समान नागरिक संहिता की राह में क्या है पेच, लागू होने पर क्या होंगे बदलाव? 

यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का मतलब है, भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो. यानी हर धर्म, जाति, लिंग के लिए एक जैसा कानून. अगर सिविल कोड लागू होता है तो विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम होंगे. 

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 समान नागरिक संहिता पर सियासी घमासान जारी
समान नागरिक संहिता पर सियासी घमासान जारी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की समान नागरिक संहिता (UCC) पर टिप्पणी के बाद सियासी घमासान शुरू हो गया है. पीएम मोदी ने मंगलवार को कहा था कि भारत दो कानूनों पर नहीं चल सकता और भारत के संविधान में भी नागरिकों के समान अधिकार की बात कही गई है. 

पीएम मोदी ने कहा, 'हम देख रहे हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के नाम पर लोगों को भड़काने का काम हो रहा है. एक घर में एक सदस्य के लिए एक कानून हो और दूसरे के लिए दूसरा तो घर चल पाएगा क्या? तो ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा?'

पीएम मोदी के बयान के बाद छिड़ी बहस

पीएम मोदी के इस बयान के बाद UCC पर राजनीतिक बहस छिड़ गई है. कई विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया है कि पीएम मोदी ने कई राज्यों में चुनाव नजदीक आने पर राजनीतिक लाभ के लिए UCC का मुद्दा उठाया. कांग्रेस का आरोप है कि पीएम मोदी महंगाई, बेरोजगारी और मणिपुर की स्थिति जैसी वास्तविक समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए यूसीसी मुद्दे का इस्तेमाल कर रहे हैं. 

राजनीतिक दलों के निशाने पर केंद्र

AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना करते हुए कहा, 'भारत के प्रधानमंत्री भारत की विविधता और इसके बहुलवाद को एक समस्या मानते हैं. इसलिए, वह ऐसी बातें कहते हैं. शायद भारत के प्रधानमंत्री को अनुच्छेद 29 के बारे में नहीं पता. क्या आप UCC के नाम पर देश से उसकी बहुलता और विविधता को छीन लेंगे?'

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इसके अलावा 30 से अधिक आदिवासी संगठनों ने भी UCC का विरोध जताते हुए आशंका जताई कि इससे उनके प्रथागत कानून कमजोर हो जाएंगे. आदिवासी जन परिषद के अध्यक्ष प्रेम साही मुंडा ने कहा, 'हम विभिन्न वजहों से UCC का विरोध करते हैं. हमें डर है कि दो आदिवासी कानून- छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट यूसीसी के कारण प्रभावित हो सकते हैं. ये दोनों कानून आदिवासी भूमि की रक्षा करते हैं.' 

क्या है  Uniform Civil Code (UCC)?  

यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का मतलब है, भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो. यानी हर धर्म, जाति, लिंग के लिए एक जैसा कानून. अगर सिविल कोड लागू होता है तो विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम होंगे. 

क्या भारतीय संविधान का हिस्सा है UCC ? 

हां, समान नागरिक संहिता भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 का हिस्सा है. संविधान में इसे नीति निदेशक तत्व में शामिल किया गया है. संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना सरकार का दायित्व है. अनुच्छेद 44 उत्तराधिकार, संपत्ति अधिकार, शादी, तलाक और बच्चे की कस्टडी के बारे में समान कानून की अवधारणा पर आधारित है.

UCC पर सुप्रीम कोर्ट का क्या कहना है?

- सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में समान नागरिक संहिता लागू करने को कहा है. 1985 में शाहबानो के मामले में फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, 'संसद को एक समान नागरिक संहिता की रूपरेखा बनानी चाहिए, क्योंकि ये एक ऐसा साधन है जिससे कानून के समक्ष समान सद्भाव और समानता की सुविधा देता है.'

- सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में एक मामले में कहा था, ईसाई कानून के तहत ईसाई महिलाओं को अपने बच्चे का 'नैचुरल गार्जियन' नहीं माना जा सकता, जबकि अविवाहित हिंदू महिला को बच्चे का 'नैचुरल गार्जियन' माना जाता है. उस समय सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि समान नागरिक संहिता एक संवैधानिक जरूरत है.

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- 2020 में लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार कानून में 2005 में किए गए संशोधन की व्याख्या की थी. अदालत ने ऐतिहासिक फैसले में बेटियों को भी बेटों की तरह पैतृक संपत्ति में समान हिस्सेदार माना था. दरअसल 2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून,1956 में संशोधन किया गया था. इसके तहत पैतृक संपत्ति में बेटियों को बराबरी का हिस्सा देने की बात कही गई थी.

UCC पर बीजेपी का क्या है तर्क?

- समान नागरिक संहिता लागू करना भाजपा के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा रहा है. बीजेपी ने हाल ही में कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले समान नागरिक संहिता का वादा किया था. उधर, उत्तराखंड जैसे राज्य अपनी समान संहिता तैयार करने की प्रक्रिया में हैं. तत्कालीन कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने दिसंबर 2022 में राज्यसभा में लिखित जवाब में कहा था कि समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने के प्रयास में राज्यों को उत्तराधिकार, विवाह और तलाक जैसे मुद्दों को तय करने वाले व्यक्तिगत कानून बनाने का अधिकार दिया गया है. 

- सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में केंद्र ने साफ कहा है कि संविधान के चौथे भाग में राज्य के नीति निदेशक तत्व का विस्तृत ब्यौरा है जिसके अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना सरकार का दायित्व है. अनुच्छेद 44 उत्तराधिकार, संपत्ति अधिकार, शादी, तलाक और बच्चे की कस्टडी के बारे में समान कानून की अवधारणा पर आधारित है.

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समान नागरिक संहिता की राह में क्या हैं पेच?

- आजादी के 75 साल में एक समान नागरिक संहिता और पर्सनल लॉ में सुधारों की मांग होती रही है. हालांकि, समान नागरिक संहिता को लागू करने में कई चुनौतियां हैं. धार्मिक संगठनों का विरोध, राजनीतिक सहमति न बन पाने के कारण ऐसा अब तक नहीं हो सका है.

- भारत धर्मनिरपेक्ष देश है, यहां सभी धर्मों को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का अधिकार है. इसे संविधान के अनुच्छेद 25 में शामिल किया गया है. UCC का विरोध करने वालों का मानना है कि सभी धर्मों के लिए समान कानून के साथ धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार और समानता के अधिकार के बीच संतुलन बनाना मुश्किल होगा. इसके चलते धर्म या जातीयता के आधार पर कई व्यक्तिगत कानून भी संकट में आ जाएंगे. 

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- समान नागरिक संहिता का विरोध करने वाले कहते हैं कि इससे सभी धर्मों पर हिंदू कानूनों को लागू कर दिया जाएगा. 

- अगस्त 2018 में 21वें विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था, 'इस बात को ध्यान में रखना होगा कि इससे हमारी विविधता के साथ कोई समझौता न हो और कहीं ये हमारे देश की क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरे का कारण न बन जाए.'

- समान नागरिक संहिता का प्रभावी अर्थ शादी, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार और संपत्ति का अधिकार से जुड़े कानूनों को सुव्यवस्थित करना होगा. 21वें विधि आयोग ने कहा था कि इसके लिए देशभर में संस्कृति और धर्म के अलग-अलग पहलुओं पर गौर करने की जरूरत होगी.

- प्रॉपर्टी, उत्‍तराधिकार और अन्‍य कई मामलों में भी अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग तरह के कानून हैं. UCC लागू होने के बाद ये सभी खत्म हो जाएंगे. ऐसे में अलग अलग धर्मों का अलग अलग बिंदुओं पर विरोध है. 

अगर UCC लागू होता है तो क्या-क्या बदलाव होंगे?

- UCC के लागू होते ही हिंदू (बौद्धों, सिखों और जैनियों समेत), मुसलमानों, ईसाइयों और पारसियों को लेकर सभी वर्तमान कानून निरस्त हो जाएंगे. 
- बीजेपी का तर्क है कि समान नागरिक संहिता लागू होने से देश में एकरूपता आएगी. 
- अगर UCC लागू होता है, तो देशभर में सभी धर्मों के लिए विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेने और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम होंगे.
 

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