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सच हुआ दलाई लामा का डर, तो नेहरू युग से भी बुरा हो सकता है भारत-चीन संबंध

83 वर्षीय दलाई लामा के निधन के बाद चीन एक बार फिर बौद्ध आस्था के प्रतीक दलाई लामा के अवतार को अपने रणनीतिक फायदे को देखते हुए नियंत्रित करने की कोशिश कर सकता है. जिसकी आशंका खुद दलाई लामा ने जताई है. ऐसी परिस्थिति में भारत के सामने यह दुविधा होगी कि वो दलाई लामा की ओर से घोषित अवतार को माने या चीन की तरफ से घोषित दलाई लामा को.

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दलाई लामा (फाइल फोटो-पीटीआई)
दलाई लामा (फाइल फोटो-पीटीआई)

तिब्बत में बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने कहा है कि उनके देहांत के बाद भारत में उनका अवतार हो सकता है, जहां उन्होंने अपने निर्वासन के 60 साल गुजारे हैं. दलाई लामा ने यह आशंका भी जताई है कि उनके मरणोपरांत दो दलाई लामा हो सकते हैं, जिनमें से एक स्वतंत्र देश (भारत) से होगा जबकि दूसरा चीन द्वारा चुना गया होगा. दलाई लामा ने चेतावनी दी है कि चीन द्वारा नामित किसी अन्य उत्तराधिकारी का सम्मान नहीं किया जाएगा. वहीं जानकारों का मानना है कि चीन की तरफ से अगला दलाई लामा घोषित होने की वजह से भारत के लिए बड़ी असहज स्थिति पैदा हो सकती है जो नेहरू युग से भी बुरी हो सकती है.

चीन ने दलाई लामा के इस ऐलान कि चीन की ओर से नामित शख्स का सम्मान नहीं होगा, को खारिज करते हुए कहा है कि पुनर्अवतार की तिब्बती बौद्ध धर्म में सदियों पुरानी रीति है. इसका एक निश्चित अनुष्ठान और परंपरा है. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग का कहना है कि हम तिब्बती बौद्ध धर्म के इन तरीके का सम्मान और संरक्षण करते हैं. सैकड़ों साल से पुन: अवतार की परंपरा है. 14वें दलाई की मान्यता भी धार्मिक रीति-रिवाज से हुई थी और चीन सरकार ने उन्हें मान्यता दी थी. लिहाजा दलाई लामा के पुनर्अवतार को राष्ट्रीय नियम-कायदे और धार्मिक रीति-रिवाज का अनुसरण करना चाहिए. चीन सरकार की धार्मिक आस्था की स्वतंत्रता की एक नीति है.

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दलाई लामा ने न्यूज एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में कहा है कि चीन दलाई लामा के पुनर्जन्म को बहुत महत्वपूर्ण मानता है. उन्हें अगले दलाई लामा के बारे में मुझसे अधिक चिंता है. भविष्य में, यदि आप देखते हैं कि दो दलाई लामा आते हैं, एक यहां से, मुक्त देश में, एक चीनी द्वारा चुना जाता है, तो कोई भी भरोसा नहीं करेगा, कोई भी सम्मान नहीं करेगा (चीन द्वारा चुने गए दलाई लामा का). इसलिए यह चीनियों के लिए एक अलग समस्या है! संभव है, यह हो सकता है.

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर ईस्ट-एशियन स्टडीज की प्रोफेसर अलका आचार्य का कहना है कि तिब्बत को चीन अपना मानता है. तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु को अपना आंतरिक मामला मानता है. अगर दलाई लामा चले गए और जाते-जाते अपने अवतार के भारत में होने की घोषणा कर गए, तो चीन उनके द्वारा घोषित अगले दलाई को स्वीकार नहीं करेगा. ऐसी परिस्थिति में भारत क्या करेगा?

प्रोफेसर अलका आचार्य का कहना है कि भारत के लिए यह स्थिति नेहरू युग से भी बुरी होगी. क्योंकि चीन 14वें दलाई लामा को कितना भी भला-बुरा कहे लेकिन यह तो मानता ही है कि वही दलाई हैं. बौद्ध धर्म में दलाई लामा की भूमिका लगभग वैसी ही है जैसी हिंदू धर्म में शंकराचार्य की होती है. चीन में बौद्ध धर्म को मानने वालों की बड़ी आबादी रहती है. आज भी वहां के लोग आध्यात्मिक ज्ञान के लिए दलाई लामा की शरण में ही आते हैं.

तिब्बती बौद्ध धर्म के 14वें दलाई लामा को साल 1959 की शुरुआत में चीनी शासन के खिलाफ एक विद्रोह के बाद भारत में शरण लेनी पड़ी, और तब से ही दलाई लामा अपने दूरस्थ और पर्वतीय मातृभूमि में भाषाई और सांस्कृतिक स्वायत्तता के लिए वैश्विक समर्थन प्राप्त करने के लिए काम करते रहे हैं. बता दें कि 1950 में चीन ने तिब्बत को अपने नियंत्रण में ले लिया था और 14वें दलाई लामा को वह अलगाववादी मानता है.

बाहरहाल 14वें दलाई लामा के बारे में चीन कितना भी भला-बुरा कहे लेकिन तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु के तौर पर उनकी मान्यता को स्वीकार तो करता ही है. लेकिन 83 वर्षीय दलाई लामा के निधन के बाद चीन एक बार फिर बौद्ध आस्था के प्रतीक दलाई लामा के अवतार को अपने रणनीतिक फायदे को देखते हुए नियंत्रित करने की कोशिश कर सकता है. जिसकी आशंका खुद दलाई लामा ने जताई है. ऐसी परिस्थिति में भारत के सामने यह दुविधा होगी कि वो दलाई लामा की ओर से घोषित अवतार को माने या चीन की तरफ से घोषित दलाई लामा को.

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