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सिर के बल काम कर रही है नैनीताल की झील, पहाड़ पी जा रहे हैं इसका पानी

नैनी झील में पानी का स्तर कम होना गर्मियों के मौसम में अक्सर देखा जाता है. इसी को देखते हुए नैनी झील से नैनीताल में पानी की आपूर्ति को सुबह-शाम एक-एक घंटे के लिए सीमित कर दिया गया है. पहले झील से शहर को हर समय आपूर्ति की जाती थी.

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नैनी झील में कम हो रहा है पानी (फाइल फोटो)
नैनी झील में कम हो रहा है पानी (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • नैनी झील का जलस्तर पिछले कुछ सालों में चिंताजनक रहा
  • आसपास बने पक्के निर्माणों से हो रहा झील को नुकसान
  • झील का रिवर्स रिचार्ज सिस्टम चालू, कम हो रहा है पानी

उत्तराखंड के नैनीताल में बसी नैनी झील का जलस्तर चिंताजनक रूप से कम हो रहा है. पिछले कुछ सालों से नैनी झील का जलस्तर गर्मियों में औसत से काफी नीचे चला जाता है. स्थानीय प्रशासन ने 2017 के बाद से झील के जलस्तर को बनाए रखने के लिए गर्मियों यानी पर्यटन के सीजन में झील से पानी की आपूर्ति की समयसीमा तय कर दी है. इसके बावजूद यह समस्या हर साल जस की तस बनी हुई है. 

नैनी झील में पानी का स्तर कम होना गर्मियों के मौसम में अक्सर देखा जाता है. इसी को देखते हुए नैनी झील से नैनीताल में पानी की आपूर्ति को सुबह-शाम एक-एक घंटे के लिए सीमित कर दिया गया है. पहले झील से शहर को हर समय आपूर्ति की जाती थी. इस बार हालात और चिंताजनक हैं, क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि इस बार झील का पानी कम होने का सिलसिला सर्दियों से ही शुरू हो गया था. पिछले चार माह में ही झील का जलस्तर औसत से साढ़े पांच फीट से ज्यादा नीचे चला गया है. फरवरी माह के आखिरी हफ्ते से तो झील का पानी साफतौर पर उतरता हुआ दिखाई दे रहा है. 
 
झील का चारों ओर से सीमेंटेड-पक्के निर्माण घिर जाना
झील का जलस्तर कम होने को लेकर पर्यावरणविद से लेकर स्थानीय प्रशासन तक चिंतित नजर आता है. हालांकि, प्रशासन की झील से कम जल निकासी की यह कोशिश सांप के चले जाने के बाद लकीर पीटने जैसी ही है. झील में अगर पानी आएगा नहीं तो उससे कम पानी निकालकर उसे नहीं बचाया जा सकता है. नैनी झील के लगातार सूखते जाने के पीछे पिछले कुछ सालों में झील के चारों तरफ आया बदलाव है. नैनी झील का रिचार्ज जोन सूखाताल हुआ करता था. यहां से झील को करीब 40 फीसदी पानी की आपूर्ति हुआ करती थी. बरसात में सूखाताल लबालब भर जाता था और उसके बाद यहां से पानी रिस-रिसकर झील में पहुंचता था. अब सूखाताल सूखने के साथ ही मलबे में तब्दील हो गया है. यहां पर वहां मिट्टी की कंक्रीटनुमा सख्त मोटी परत जमा हो गई है. इसके अलावा अयारपाटा में जो कि झील का कैचमेंट एरिया हुआ करता था, अब वहां पर सीमेंटेड कार पार्किंग बनाई गई है. भूवैज्ञानिक बीएस कोटलिया कुछ साल पहले अपने एक शोध में कह चुके हैं कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो नैनी झील की उम्र 50 साल भी नहीं रह जाएगी.

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बूढ़े होते पेड़ और जंगलों में आया बदलाव
नैनी झील किसी डैम या वॉटर टैंक की तरह नहीं है. किसी भी तालाब या प्राकृतिक झील का अपना एक फिल्टरेशन प्रोसेस होता है. हर झील एक पारिस्थितिकी तंत्र और जैवीय चक्र पर निर्भर रहती है और इसे गतिमान भी रखती है. इसमें किसी भी तरह की मानवीय छेड़छाड़ दूरगामी प्रभाव डालती है. नैनीताल में कभी 'शेर का डांडा' जैसी संवेदनशील चोटियों से घास काटने तक की मनाही थी, अब वहां पर पक्के निर्माण बन गए हैं. इसके अलावा नैनी झील के चारों ओर के पहाड़ों के जंगलों में भी बड़े स्तर पर बदलाव आया है. यहां पर पहले बांज (Oak) के पेड़ हुआ करते थे जो बारिश के पानी को रोकने का काम करते थे. यही पानी बरसात का मौसम बीत जीने के बाद झील में रिसकर पहुंचता रहता था. अब इन जंगलों के ज्यादातर पेड़ बूढ़े हो चुके हैं और नए पेड़ पैदा नहीं कर पा रहे हैं. जो पेड़ सूख गए हैं, उनकी जगह नए पेड़ नहीं लगाए गए. जो पेड़ लगे भी, वे यहां की पारिस्थितिकी या जरूरत के हिसाब से नहीं लगाए गए.

पानी को रोकने का काम कर रहे हैं चीड़-देवदार के पेड़
हिमालय के जंगलों की जो समस्या सामने आ रही है, उसका उदाहरण नैनीताल में देखा जा सकता है. ब्रिटिशकाल में यहां के पहाड़ों पर लगाए गए चीड़ और देवदार के पेड़ नुकसान पहुंचाने का काम कर रहे हैं. इन पेड़ों के साथ समस्या यह है कि इनकी पत्तियां न तो जानवर खाते हैं और न ही यह आसानी से डिकम्पोज होती हैं और एक परत की तरह जमीन पर बिछती चली जाती है. इस तरह से ये पत्तियां बारिश के पानी को जमीन में जाने से रोकने का काम करती हैं. इसके अलावा यह जंगलों में उगने वाली घास को भी मारने का काम करती है. जंगल से आशय सिर्फ बड़े पेड़ों से नहीं होता. उनको बचाए रखने के लिए छोटे पौधे, बेलें, घासफूस, मशरूम, काई, फंफूद, कीड़े-मकौड़े, तितलियां समेत सैकड़ों जीव मिलकर रहते हैं. ये सब मिलकर ही किसी जंगल के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं. इनमें से किसी भी एक चीज की कमी होने पर पूरे तंत्र का संतुलन गड़बड़ा जाता है. इन पेड़ों की वजह से जंगलों में घास, मशरूम, फंफूद लगातार कम होती जा रही है. इसका असर यह हुआ है कि धीरे-धीरे जंगलों में बड़े पेड़ भी कम होते जा रहे हैं और पहाड़ नंगे होते जा रहे हैं. झील के चारों ओर के जंगल नहीं बचे तो झील का बचना भी मुश्किल हो जाएगा. 

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सिर के बल काम करने लगी है झील
इस तरह से एक झील या तालाब की जिंदगी उतनी ही लंबी होती है, जब तक कि उसमें से निकाला जा रहा पानी प्रकृतिक तरीके से उसमें न भर जाए. नैनी झील में वॉटर रिचार्ज की यह प्रकिया बारिश के पानी से होती रही है. बारिश का पानी आसपास के पहाड़ों की जमीन के नीचे से होकर रिस-रिसकर झील में पहुंचता रहा है. यह प्रक्रिया पूरे साल जारी रहती है. नैनी झील के तीन ओर से पहाड़ इस काम में झील की मदद करते रहे हैं. लेखक और पर्यावरण चिंतक मलिल्कार्जुन जोशी कहते हैं कि धीरे-धीरे बढ़ती नैनीताल की आबादी और यहां होते बदलावों ने झील के आसपास के इन पहाड़ों के अधिकांश हिस्से को कंक्रीट का बना दिया है. इससे यह पहाड़ न बारिश का पानी सोख पाते हैं और न ही झील को दे पाते हैं. लेकिन पहाड़ पर मौजूद पेड़ों को जिंदा रहने के लिए पानी तो चाहिए होता है और अब वे पेड़ अपने आसपास मौजूद पानी से स्रोत यानी झील से पानी खींच रहे हैं. यानी नैनी झील का जो वॉटर रिचार्ज प्रोसेस था, अब वह डिस्चार्ज प्रोसेस बनकर रह गया है. यहां अब यहां उल्टी प्रक्रिया देखने को मिल रही है कि जो पहाड़ झील को भरने में मदद करते थे, वे अब झील का पानी पी रहे हैं. यही वजह है कि हर साल गर्मियों का सीजन आते ही नैनी झील का जलस्तर कम होने लगता है.

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केवल बारिश के भरोसे भर रही है नैनी झील
नैनी झील में बीती बरसात में जलस्तर रिकॉर्ड लेवल औसत से 11 फीट ऊपर तक पहुंच गया था. इसने पिछले तीस सालों का रिकॉर्ड भी तोड़ा था और बरसात खत्म होने के बाद से ही जलस्तर घटता जा रहा है. यानी झील केवल बरसात के पानी पर निर्भर होकर रह गई है. भूवैज्ञानिकों के अनुसार नैनी झील को इसकी जरूरत का केवल 13 फीसदी पानी बारिश से मिलता है. करीब 40 फीसदी पानी इसे सूखाताल से मिलता रहा है. बाकी का पानी इसमें तीन ओर के पहाड़ों से रिस रिसकर आता रहा है. नैनीताल में होने वाली बारिश का ज्यादातर हिस्सा मॉनसून के सीजन में आता है. लेकिन बाद में भी झील का जलस्तर बनाए रखने में चारों ओर के पहाड़ और झील का कैचमेंट एरिया मदद करता था. पर्यावरण विषयों के लेखक विनोद पांडे कहते हैं कि झील का यह रिचार्च प्रोसेस अब नैनीताल के पहाड़ों पर पक्के निर्माण होने से प्रभावित हो गया है. वह कहते हैं कि संवेदनशील जगह पर निर्माण को लेकर नियमों का सख्ती से पालन किया जाना जरूरी है. 

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झील को बचाने के लिए त्वरित और दीर्घकालिक रणनीति जरूरी
उत्तराखंड जल निगम में इंजीनियर रहे शेखरानंद त्रिपाठी नैनी झील को बचाने के लिए कुछ त्वरित और कुछ दीर्घकालिक उपाय बताते हैं. वह कहते हैं कि झील से निकलने वाले पानी की सप्लाई को सीमित किया जाना चाहिए. इसके अलावा वह झील के पास एक बड़ा या छोटे-छोटे रिजर्वॉयर बनाने की भी जरूरत बताते हैं जिनमें बारिश का पानी रोका जा सके और जो बरसात खत्म होने के बाद इसे रिचार्ज करता रहे. इसके अलावा वह कहते हैं कि नैनीताल जैसी जगहों पर सीवेज वॉटर को फिल्टर करके पीने योग्य पानी में तब्दील करना भी जरूरी है. इसके पीछे की वजह वह बताते हैं कि यहां सीवेज में बर्बाद होने वाले पानी का करीब 80 फीसदी पीने योग्य होता है. वह अंत में कहते हैं कि इंसानों को अपने आजतक के हासिल ज्ञान का इस्तेमाल प्राकृतिक संसाधनों को बचाने में करना चाहिए, वरना बाद में काफी देर हो जाएगी. 

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