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लॉकडाउन के कारण साफ हुई नैनीताल की नैनी झील, दोगुना हुआ पानी का स्तर

लॉकडाउन में प्रकृति ने अपने आपको रिसेट कर लिया है, जिसका जीता जागता उदाहरण गंगा के बाद अब नैनीताल की नैनी झील में भी देखने को मिल रहा है.

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पुराने सौंदर्य में नैनीताल की नैनी झील (Photo- Aajtak)
पुराने सौंदर्य में नैनीताल की नैनी झील (Photo- Aajtak)

  • लॉकडाउन के कारण पुराने सौंदर्य में लौटी नैनी झील
  • झील के अंदर से साफ दिखाई दे रही हैं मछलियां

दुनिया के ज्यादातर देश इस समय कोरोना के चलते लॉकडाउन है. ऐसे में इसका असर आमजन के जीवन पर पड़ रहा है. सभी व्यवसाय ठप पड़े हुए हैं, सड़कें सूनी हैं. लेकिन इस लॉकडाउन से प्रकृति ने जरूर अपने असली स्वरूप को फिर से हासिल कर लिया है. एक तरफ जहां लोग कोरोना से परेशानियां झेल रहे हैं, तो वहीं प्रकृति खूब करिश्मे भी दिख रही है.

गंगा का पानी 100 प्रतिशत पीने योग्य हो गया है, तो उत्तराखंड की मशहूर और विश्व प्रसिद्ध नैनी झील ने भी अपने पुराने सौंदर्य में आते हुए पानी को साफ कर लिया है. जो झील के पानी के स्रोत इंसानी प्रवृत्ति की वजह से बंद हो गए थे, वो इस लॉकडाउन की वजह से पुनर्जीवित हो गए.

मतलब साफ है कि प्रकृति ने अपने आपको रिसेट कर लिया है, जिसका जीता जागता उदाहरण गंगा के बाद अब नैनीताल की नैनी झील में भी देखने को मिल रहा है. ऐसे में वर्षों से करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी जो काम नहीं हुआ वो महज एक माह के लॉकडॉउन ने कर दिया.

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उत्तराखंड में जहां गंगा जल से लेकर पर्वतीय प्रदेश की हवा पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त हो चुकी है, शुद्ध हो चुकी है, तो वहीं नैनीताल की प्रसिद्ध नैनी झील जो कि काफी गंदी हो चुकी थी और इसका पानी लगातार घट रहा था. लेकिन लॉकडाउन के एक माह की अवधि में झील ने अपना रूप स्वत: ही बदल लिया है. विश्व प्रसिद्ध झील अब पूरी तरह से साफ हो चुकी है.

साथ ही इसका जल स्तर भी काफी बढ़ गया है. पानी इतना साफ हो गया है कि अब इसकी ऊपरी सतह पर मछलियों के झुंड देखे जा रहे हैं, जो गंदगी और प्रदूषण की वजह से कई वर्षों से दिखाई देनी बंद हो गई थीं. इसके साथ ही झील के अंदर तमाम बंद हो चुके पानी के स्रोत भी खुल गए हैं. जिस झील के पानी के गिरते स्तर को लेकर तमाम वैज्ञानिक चिंतित थे वो आज बेहद खुश भी हैं और हैरान भी हैं.

रदूषण की वजह से पारदर्शिता नहीं

पर्यावरण पर लगातार काम कर रहे डॉ अजय सिंह रावत इस बदलाव से बेहद खुश हैं. वे बताते हैं कि झील के ऊपरी 7 मीटर के स्तर को अपिलिमिनियन कहा जाता है. इसके बाद 9 मीटर तक का जो स्तर होता है वो थर्मोक्लाइन कहा जाता है. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन से पहले तक इसमें मछलियां नहीं दिखती थीं, जिसकी वजह प्रदूषण की वजह से पारदर्शिता का न होना था.

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इसके अलावा उन्होंने ये भी बताया कि इससे 9 मीटर के बाद शुरू होने वाले 23 मीटर नीचे के हिस्से को हाइपो लिमनियन कहा जाता है, जहां ऑक्सीजन का लेवल जीरो था. मगर 1 महीने के लॉकडाउन की वजह से वाकई सरोवर को आराम मिला है, न कोई गंदगी जा रही है और न ही होटल से निकलने वाली वेस्ट. यही वजह है कि सरोवर ने पुनः अपने जीवन को प्राप्त कर लिया है. वहीं, झील के पानी का स्तर दोगना होना भी बेहद सुखद है. डॉ रावत बताते हैं कि इस बदलाव से यकीनन इसका जीवन बढ़ गया है. अन्यथा ये माना जा रहा था कि ये सरोवर खत्म होने लगा है जिसकी वजह अत्याधिक प्रदूषण थी.

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