ब्‍लॉगर

चंदेरी दुर्ग और पराक्रम की कहानियां

– लोकेन्द्र सिंह

मध्य प्रदेश के जिला अशोकनगर में बेतवा (बेत्रवती) एवं (उर्वसी) नदियों के मध्य विंध्याचल की सुरम्य वादियों से घिरा ऐतिहासिक नगर चंदेरी और उसका दुर्ग (किला) हमारी धरोहर है। यह नगर महाभारत काल से लेकर बुंदेलों तक की विरासत को संभालकर रखे हुए है। यहां समृद्धि, सांस्कृतिक-धार्मिक विरासत, त्याग, प्रेम और शौर्य, समर्पण, वीरता एवं बलिदान की गाथाओं की अनुभूति होती है। यह छोटा-सा सुंदर शहर अपनी रेशमी साड़ियों (चंदेरी की साड़ियों) के लिए विश्व प्रसिद्ध है। चंदेरी उनको भी लुभाता है, जिन्हें कला और संस्कृति के रंग सुहाते हैं।

यहां केवल किला ही प्राचीन स्थापत्य नहीं है बल्कि चंदेरी की गली-गली में ऐतिहासिक धरोहर बिखरी है। आज का चंदेरी, नये और पुराने रंगों के संयोजन से तैयार एक खूबसूरत तस्वीर की तरह नजर आता है। जैसे किसी बुनकर ने रेशम की साड़ी में जगह-जगह सोने के धागों से फुलकारी की हो। किले से ही तीन-चार ऊंची पहाड़ियां नजर आती हैं, जो एक समय में चंदेरी के निगरानी के केंद्र थे। चंदेरी के दर्शनीय स्थलों में त्रिकाल चौबीसी, बत्तीसी बावड़ी, कौशक महल, कटीघाटी, बादल महल, रामनगर महल, सिंहपुर महल, लक्ष्मण मंदिर, शक्तिपीठ जागेश्वरी देवी मंदिर, फुआरी के हनुमान मंदिर की सुंदरता, जामा मस्जिद और शहजादी का रोजा शामिल है। जैन अतिशय क्षेत्र खंदारगिरी और सकलकुड़ी जैसे धार्मिक महत्व के स्थान भी पर्यटकों के मन को शांति और ऊर्जा प्रदान करते हैं।


उर्वशी नदी के किनारे गुफाओं में बने शैलचित्र भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। ये शैलचित्र इस बात के साक्षी हैं कि चंदेरी प्रागैतिहासक काल से एक जीवंत शहर है। यहां का संग्रहालय महत्वपूर्ण है। आज किले की चारदीवारी अवैध अतिक्रमण में गुम होती जा रही है। अतिक्रमणकारियों ने चंदेरी नगर के परकोटे पर कब्जा कर लिया है। कई स्थानों पर उसको तोड़कर पत्थर निकाल लिए हैं।

चंदेरी का इतिहास महाभारत काल से जुड़ता है। चंदेरी, भगवान श्रीकृष्ण की बुआ श्रुति के पुत्र शिशुपाल की राजधानी थी। उस समय इसका उल्लेख चेदी राज्य के रूप में आता है। पांचवीं-छठवीं शताब्दी में जिन 16 जनपदों का उल्लेख मिलता है, उनमें सातवां महाजनपद चेदी था। वर्तमान चंदेरी शहर से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर जंगल में आज भी बूढ़ी चंदेरी में प्राचीन शहर के अवशेष बिखरे पड़े हैं। कालांतर में यह शहर काल के गाल में समा गया और नौवीं शताब्दी के बाद से वर्तमान चंदेरी अस्तित्व में आने लगा। चंदेरी के किले में लगे शिलालेख के अनुसार, चंदेरी में सांस्कृतिक गतिविधियां चंदेलों के समय (9वीं शताब्दी ई.) से प्रारंभ हो जाती हैं। वर्तमान चंदेरी नगर को 10वीं-11वीं शताब्दी में प्रतिहारवंशी राजा कीर्तिपाल ने बसाया और इसे अपनी राजधानी बनाया। इतिहासकार अलबरूनी एवं इब्नबतूता ने भी अपने लेखन में चंदेरी की समृद्धि एवं महत्व का वर्णन किया है।

चंदेरी के शासक मेदनी राय और बाबर के बीच 29 जनवरी, 1528 को हुए भयानक युद्ध के बाद क्रूर आक्रांताओं से अपने स्वाभिमान की रक्षा करने के लिए रानी मणिमाला के साथ 1600 क्षत्राणियों ने किले पर जौहर किया था। उन महान वीरांगनों की स्मृति को अक्षुण्य रखने के लिए चंदेरी के किले पर जौहर स्मारक बनाया गया है। इसके समीप ही प्रसिद्ध संगीतज्ञ बैजू बावरा का समाधि स्थल भी है। चंदेरी, संगीत सम्राट बैजू बावरा की जन्मभूमि भी है। बैजू बावरा के जीवन से जुड़ी अनेक कहानियां यहां की हवा में तैरती हैं।

जौहर स्मारक के सामने ही किले के प्रमुख स्थापत्य ‘कीर्ति महल’ का पृष्ठ भाग दिखायी पड़ता है। भविष्य में आप कीर्ति महल की विशाल दीवार पर ‘प्रकाश एवं ध्वनि कार्यक्रम’ के माध्यम चंदेरी की कीर्तिगाथा सुन सकेंगे। प्रतिहारवंशी राजा कीर्तिपाल द्वारा बनाए गए कीर्ति महल को ‘नौखंडा महल’ भी कहा जाता है। कीर्ति महल के सामने ही हवा महल या हवापौर है, जहां से चंदेरी नगर के नयनाभिराम दृश्य देख सकते हैं। इस स्थान से किले की तलहटी में स्थित बादल महल, बादल दरवाजा, जामा मस्जिद, ऊंट सराय जैसे पर्यटकों की रुचि के स्थान दिखायी देते हैं। चंदेरी के मुख्य किले में प्रवेश के लिए कोई शुल्क नहीं हैं। परंतु बादल महल में जाने के लिए आपको 20 रुपये का टिकट लेना होता है।

चंदेरी में वैसे तो अनेक मंदिर हैं, परंतु लक्ष्मण मंदिर विशेष है। इस मंदिर में शेषनाग के रूप में लक्ष्मणजी की प्रतिमा है। मंदिर के पास बुंदेला राजाओं की छतरियां भी हैं। परमेश्वरा तालाब में लक्ष्मण मंदिर का प्रतिबिम्ब देखते बनता है। चंदेरी पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन ललितपुर है। यहां से चंदेरी से लगभग 40 किलोमीटर दूर है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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