दलाई लामा: एक 87 साल के बुज़ुर्ग से इतना क्यों चिढ़ता है चीन

दलाई लामा

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दलाई लामा आज 87 साल के हो गए. उन्हें 61 साल पहले 1959 तिब्बत से भागना पड़ा था. तब से वो भारत में रह रहे हैं.

31 मार्च 1959 को तिब्बत के इस धर्मगुरु ने भारत में क़दम रखा था. 17 मार्च को वो तिब्बत की राजधानी ल्हासा से पैदल ही निकले थे और हिमालय के पहाड़ों को पार करते हुए 15 दिनों बाद भारतीय सीमा में दाखिल हुए थे. यात्रा के दौरान उनकी और उनके सहयोगियों की कोई ख़बर नही आने पर कई लोग ये आशंका जताने लगे थे कि उनकी मौत हो गई होगी.

दलाई लामा के साथ कुछ सैनिक और कैबिनेट के मंत्री थे. चीन की नज़रों से बचने के लिए ये लोग सिर्फ रात को सफ़र करते थे. टाइम मैगज़ीन के मुताबिक बाद में ऐसी अफ़वाहें भी फैलीं कि ,"बौद्ध धर्म के लोगों की प्रार्थनाओं के कारण धुंध बनी और बादलों ने लाल जहाज़ों की नज़र से उन्हें बचाए रखा. "

कौन हैं दलाई लामा?

दलाई लामा 85 साल के तिब्बती आध्यात्मिक नेता है. चीन तिब्बत पर अपना दावा पेश करता है. आख़िर 85 साल के इस बुज़ुर्ग से चीन इतना चिढ़ा क्यों रहता है? जिस देश में भी दलाई लामा जाते हैं वहां की सरकारों से चीन आधिकारिक तौर पर आपत्ति जताता है. आख़िर ऐसा क्यों है?

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चीन दलाई लामा को अलगाववादी मानता है. वह सोचता है कि दलाई लामा उसके लिए समस्या हैं.

दलाई लामा अमरीका भी जाते हैं तो चीन के कान खड़े हो जाते हैं. हालांकि 2010 में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चीन के विरोध के बावजूद दलाई लामा से मुलाक़ात की थी.

चीन और दलाई लामा का इतिहास ही चीन और तिब्बत का इतिहास है.

1409 में जे सिखांपा ने जेलग स्कूल की स्थापना की थी. इस स्कूल के माध्यम से बौद्ध धर्म का प्रचार किया जाता था.

यह जगह भारत और चीन के बीच थी जिसे तिब्बत नाम से जाना जाता है. इसी स्कूल के सबसे चर्चिच छात्र थे गेंदुन द्रुप. गेंदुन जो आगे चलकर पहले दलाई लामा बने.

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बौद्ध धर्म के अनुयायी दलाई लामा को एक रूपक की तरह देखते हैं. इन्हें करुणा के प्रतीक के रूप में देखा जाता है.

दूसरी तरफ़ इनके समर्थक अपने नेता के रूप में भी देखते हैं. दलाई लामा को मुख्य रूप से शिक्षक के तौर पर देखा जाता है. लामा का मतलब गुरु होता है. लामा अपने लोगों को सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा देते हैं.

तिब्बती बौद्ध धर्म के नेता दुनिया भर के सभी बौद्धों का मार्गदर्शन करते हैं.

1630 के दशक में तिब्बत के एकीकरण के वक़्त से ही बौद्धों और तिब्बती नेतृत्व के बीच लड़ाई है. मान्चु, मंगोल और ओइरात के गुटों में यहां सत्ता के लिए लड़ाई होती रही है. अंततः पांचवें दलाई लामा तिब्बत को एक करने में कामयाब रहे थे.

इसके साथ ही तिब्बत सांस्कृतिक रूप से संपन्न बनकर उभरा था. तिब्बत के एकीकरण के साथ ही यहां बौद्ध धर्म में संपन्नता आई. जेलग बौद्धों ने 14वें दलाई लामा को भी मान्यता दी.

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चीन और दलाई लामा के बीच समकालीन संबंध

दलाई लामा के चुनावी प्रक्रिया को लेकर ही विवाद रहा है. 13वें दलाई लामा ने 1912 में तिब्बत को स्वतंत्र घोषित कर दिया था.

क़रीब 40 सालों के बाद चीन के लोगों ने तिब्बत पर आक्रमण किया. चीन का यह आक्रमण तब हुआ जब वहां 14वें दलाई लामा को चुनने की प्रक्रिया चल रही थी. तिब्बत को इस लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा.

कुछ सालों बाद तिब्बत के लोगों ने चीनी शासन के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया. ये अपनी संप्रभुता की मांग करने लगे. हालांकि विद्रोहियों को इसमें सफलता नहीं मिली.

दलाई लामा को लगा कि वह बुरी तरह से चीनी चंगुल में फंस जाएंगे. इसी दौरान उन्होंने भारत का रुख़ किया. दलाई लामा के साथ भारी संख्या में तिब्बती भी भारत आए थे. यह साल 1959 का था.

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चीन को भारत में दलाई लामा को शरण मिलना अच्छा नहीं लगा. तब चीन में माओत्से तुंग का शासन था.

दलाई लामा और चीन के कम्युनिस्ट शासन के बीच तनाव बढ़ता गया. दलाई लामा को दुनिया भर से सहानुभूति मिली लेकिन अब तक वह निर्वासन की ही ज़िंदगी जी रहे हैं.

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दलाई लामा की छवि शांति के प्रतीक के रूप में बनी

1989 में दलाई लामा को शांति का नोबेल सम्मान मिला. दलाई लामा का अब कहना है कि वह चीन से आज़ादी नहीं चाहते हैं, लेकिन स्वायतता चाहते हैं.

1950 के दशक से दलाई लामा और चीन के बीच शुरू हुआ विवाद अभी ख़त्म नहीं हुआ है. दलाई लामा के भारत में रहने से चीन से रिश्ते अक्सर ख़राब रहते हैं.

भारत का रुख भी तिब्बत को लेकर बदलता रहा है.

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