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8 साल के निचले स्तर पर आई थोक महंगाई:जून में ये -4.12% रही, खाने-पीने की चीजें सस्ती होने से कम हुई महंगाई

नई दिल्ली10 महीने पहले
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लगातार तीसरे महीने थोक महंगाई दर में गिरावट दर्ज की गई है। - Dainik Bhaskar
लगातार तीसरे महीने थोक महंगाई दर में गिरावट दर्ज की गई है।

जून महीने में थोक महंगाई दर यानी होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) घटकर -4.12% पर आ गई है। लगातार तीसरे महीने WPI में गिरावट दर्ज की गई है। इतना ही नहीं थोक महंगाई का यह 8 साल का सबसे निचला स्तर भी है। इससे पहले अक्टूबर 2015 में ये -3.81% रही थी। मई महीने में यह -3.48% पर थी। वहीं पिछले साल जून 2022 में थोक महंगाई दर 15.18% पर रही थी।

खाने-पीने की चीजें सस्ती होने से कम हुई महंगाई
जून में थोक महंगाई की दर में गिरावट मुख्य रूप से मिनरल ऑयल्स, खाने-पीने की चीजें, बेसिक मेटल्स, क्रूड पेट्रोलियम और नेचुरल गैस और कपड़ों की कीमतें कम होने के कारण आई है।

फूड इंडेक्स में थोक महंगाई जून में सालाना आधार पर 1.24% कम हुई, जबकि एक महीने पहले इसमें 1.59% की गिरावट आई थी। जून में प्राथमिक वस्तुओं की महंगाई घटकर 2.87% रह गई। फूड आइटम्स कैटेगरी में जून में सब्जियों की महंगाई 21.98% कम हुई, जबकि दालों और दूध की महंगाई 9.21% और 8.59% बढ़ गई।

ईंधन और बिजली की महंगाई दर में 12.63% की गिरावट
जून में ईंधन और बिजली की महंगाई दर में 12.63% की गिरावट दर्ज की गई है। मैन्युफैक्चर प्रोडक्ट की महंगाई मई में 2.97% कम होने के बाद जून में भी कम होकर 2.71% रह गई है। हालांकि, मासिक आधार पर मैन्युफैक्चर प्रोडक्ट की महंगाई में मई और जून में 0.50% की गिरावट देखी गई।

ईंधन और बिजली कैटेगरी में LPG, पेट्रोल और HSD महंगाई में क्रमशा 22.29%, 16.32% और 18.59% की गिरावट आई। क्रूड पेट्रोलियम की महंगाई जून में सालाना आधार पर 32.68% कम हुई है।

करीब 8 साल के निचले स्तर पर थोक महंगाई
थोक महंगाई का ये करीब 8 साल का निचला स्तर है। इससे पहले अक्टूबर 2015 को भारत की थोक महंगाई दर -3.81% रही थी। वहीं बीते 10 साल में थोक महंगाई के सबसे निचले स्तर की बात करें तो यह 14 सितंबर 2015 को -4.95% रही थी।

WPI का आम आदमी पर असर
थोक महंगाई के लंबे समय तक बढ़े रहने से ज्यादातर प्रोडक्टिव सेक्टर पर इसका बुरा असर पड़ता है। अगर थोक मूल्य बहुत ज्यादा समय तक ऊंचे स्तर पर रहता है, तो प्रोड्यूसर इसका बोझ कंज्यूमर्स पर डाल देते हैं। सरकार केवल टैक्स के जरिए WPI को कंट्रोल कर सकती है।

जैसे कच्चे तेल में तेज बढ़ोतरी की स्थिति में सरकार ने ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी कटौती की थी। हालांकि, सरकार टैक्स कटौती एक सीमा में ही कम कर सकती है। WPI में ज्यादा वेटेज मेटल, केमिकल, प्लास्टिक, रबर जैसे फैक्ट्री से जुड़े सामानों का होता है।

निगेटिव मंहगाई से भी प्रभावित होती है इकोनॉमी
महंगाई का निगेटिव में रहना भी इकोनॉमी पर प्रभाव डालता है। इसे डिफ्लेशन कहा जाता है। निगेटिव महंगाई तब होती है वस्तुओं की आपूर्ति उन वस्तुओं की मांग से ज्यादा हो जाती है। इससे दाम गिर जाते हैं और कंपनियों का प्रॉफिट घट जाता है। प्रॉफिट घटता है तो कंपनियां वर्कर्स को निकलाती हैं और अपने कुछ प्लांट या स्टोर भी बंद कर देती हैं।

महंगाई कैसे मापी जाती है?
भारत में दो तरह की महंगाई होती है। एक रिटेल, यानी खुदरा और दूसरी थोक महंगाई होती है। रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) भी कहते हैं। वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है। ये कीमतें थोक में किए गए सौदों से जुड़ी होती हैं।

दोनों तरह की महंगाई को मापने के लिए अलग-अलग आइटम को शामिल किया जाता है। जैसे थोक महंगाई में मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी 63.75%, प्राइमरी आर्टिकल जैसे फूड 20.02% और फ्यूल एंड पावर 14.23% होती है। वहीं, रिटेल महंगाई में फूड और प्रोडक्ट की भागीदारी 45.86%, हाउसिंग की 10.07%, कपड़े की 6.53% और फ्यूल सहित अन्य आइटम की भी भागीदारी होती है।

भारत में WPI तो अमेरिका में PPI से मापते हैं महंगाई
WPI का इस्तेमाल भारत में महंगाई को मापने के लिए किया जाता है। WPI में बदलाव से फिस्कल और मॉनेटरी पॉलिसी चेंज बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं। वहीं अमेरिका में प्रोड्यूसर प्राइस इंडेक्स (PPI) का इस्तेमाल महंगाई को मापने के लिए किया जाता है।

जून में फुटकर महंगाई 4.81% पर पहुंची
वहीं जून में फुटकर महंगाई 4.81% पर पहुंच गई है। मई में यह 25 महीने के निचले स्तर 4.25% पर आ गई थी। जून में सब्जियों की ऊंची कीमतों के कारण महंगाई बढ़ी है। असमान मानसूनी बारिश ने फसलों को नुकसान पहुंचाया है जिससे दाम बढ़े हैं।

कंज्यूमर फूड प्राइस इंडेक्स (CPI) जून में बढ़कर 4.49% पर पहुंच गया, मई में ये 2.96% था। वहीं अप्रैल में यह 3.84% रहा था। ये इंडेक्स खाने-पीने के सामान के दामों में बढ़ोतरी और उनमें कमी को दिखाता है। CPI बास्केट में लगभग आधी हिस्सेदारी खाने-पीने की चीजों की होती है।

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