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आपका बटुआ-दिवाली पर कैशबैक के लालच में खरीदारी:क्रेडिट कार्ड, ई-कॉमर्स कंपनियों का फायदा या आपका नुकसान; क्या है कैशबैक का गणित

6 महीने पहलेलेखक: दिनेश मिश्र
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इस दिवाली हमारे-आपके घर रोशन होंगे। मिठाइयों-उपहारों-खुशियों का तांता लगेगा। अब त्योहारों के समय तो शॉपिंग बनती ही है, वो भी तब जब कंपनियां जमकर लुभावने ऑफर्स दे रही हों। हर खरीदारी पर खूब कैशबैक के ऑफर भी आएंगे। इससे आप एक और खरीदारी के लिए प्रोत्साहित होंगे।

लेकिन कैशबैक का ये लालच कहीं आपकी जेब पर भारी न पड़ जाए। इसलिए इन ऑफर्स को लेकर सावधानी बरतनी भी जरूरी है।

चलिए आज जानते हैं कि कैशबैक क्या होता है और इसके पीछे का गणित और मनोविज्ञान कैसे काम करता है।

कैशबैक क्या होता है, कहां से आता है यह पैसा

जब आप खरीदारी करते हैं तो खर्च की गई राशि का कुछ प्रतिशत आपके खाते में वापस आता है। उसे कैशबैक कहते हैं।

हालांकि कैशबैक पाने के लिए आपको पहले पैसे खर्च करने पड़ेंगे यानी खरीदारी करनी ही पड़ेगी।

इसे ऐसे समझिए कि आपने किसी शॉपिंग मार्केट से 1500 रुपए की खरीदारी की और उस पर 10 फीसदी कैशबैक का ऑफर मिलता है तो आपके खाते में 150 रुपए वापस आ जाएंगे।

इसी रकम को कैशबैक कहते हैं। खरीदारी के बाद कैशबैक कस्टमर के वॉलेट या क्रेडिट कार्ड अकाउंट में लौटाया जाता है।

लेकिन इस पैसे का इस्तेमाल करने के लिए आपको फिर से खरीदारी करनी पड़ेगी।

कैशबैक के लिए बैंकों और वॉलेट की गठजोड़

दरअसल, ई-कॉमर्स कंपनियां कस्टमर्स को कैशबैक देने के लिए बैंकों और वॉलेट कंपनियों से गठजोड़ करती हैं।

जब कस्टमर उससे खरीदारी करता है तो कंपनियों की बिक्री और मुनाफा बढ़ता है। वहीं, बैंकों का कारोबार भी बढ़ता है।

बैंक के क्रेडिट कार्ड से खरीदारी पर भी कैशबैक से मुनाफा होता है। कैशबैक से बैंक की भी कमाई होती है।

मिनिमम खरीदारी पर ही मिलता है कैशबैक

ई-कॉमर्स कंपनी बैंक को उसके कार्ड या वॉलेट से शॉपिंग करने पर एक निश्चित रकम देती है। वहीं कंपनियां कैशबैक के लिए मिनिमम रकम तय करती हैं, यानी कैशबैक लेने के लिए कस्टमर्स को उस मिनिमम रकम की खरीदारी करनी होती है।

दरअसल, आज के डिजिटल और प्रतिस्पर्द्धा वाले दौर में हर कंपनी अपने प्रोडक्ट के प्रचार-प्रसार पर भारी-भरकम रकम खर्च करती है।

अपनी चीजों की बिक्री के लिए वह डिस्काउंट और रिवॉर्ड पॉइंट ऑफर करती है। क्रेडिट कार्ड कंपनी हो या ई-कॉमर्स कंपनी या फिर ऑनलाइन पेमेंट प्लेटफॉर्म हो, आज सभी जगह कैशबैक देना आम बात हो गई है।

कैशबैक कैसे करता है काम, किसे मिलता है फायदा

कैशबैक लंबे समय के लिए अपने प्रोडक्ट के प्रचार-प्रसार और मार्केट में छा जाने की किसी कंपनी की रणनीति का एक हिस्सा है।

जैसे क्रेडिट कार्ड के मामले में देखा जाए तो कुछ क्रेडिट कार्ड कंपनियां अपने कार्ड होल्डर्स को हर खरीदारी पर 1 से 10 फीसदी कैशबैक ऑफर करती हैं।

वे इस कैशबैक को या तो कैश क्रेडिट के रूप में कार्ड होल्डर्स के अकाउंट में डाल देती हैं या फिर रिवॉर्ड क्रेडिट पॉइंट्स देती हैं, ताकि आप अगली खरीदारी के लिए प्रोत्साहित हों।

क्रेडिट कार्ड कंपनियों की चांदी ही चांदी

अगर कोई ऑनलाइन कारोबारी साइट कस्टमर से क्रेडिट कार्ड से पेमेंट ले रही है तो उस क्रेडिट कार्ड कंपनी को भी उस पेमेंट का कुछ प्रतिशत यानी मर्चेंट फीस यानी प्रॉसेसिंग फीस के रूप में देना पड़ता है।

क्रेडिट कार्ड जारी करने वाली कंपनी इस फीस का कुछ हिस्सा कैशबैक के रूप में कुछ चुनिंदा कस्टमर्स के साथ शेयर करती है।

आगे बढ़ने से पहले मर्चेंट डिस्काउंट रेट यानी एमडीआर को समझना जरूरी है-

क्या है मर्चेंट डिस्काउंट रेट, किसे मिलता है यह पैसा

मर्चेंट डिस्काउंट रेट वह फीस है, जो दुकानदार डेबिट या क्रेडिट कार्ड से पेमेंट करने पर आपसे लेता है। आप कह सकते हैं कि यह डेबिट या क्रेडिट कार्ड से पेमेंट की सुविधा पर लगने वाली फीस है।

यह फीस दुकानदार को नहीं मिलती है। यह रकम तीन हिस्सों में बंट जाती है। सबसे बड़ा हिस्सा क्रेडिट या डेबिट कार्ड जारी करने वाले बैंक को मिलता है।

इसके बाद कुछ हिस्सा उस बैंक को मिलता है, जिसकी प्वाइंट ऑफ सेल्स (पीओएस) मशीन दुकानदार के यहां लगी होती है। अंत में इस फीस का कुछ हिस्सा पेमेंट कंपनी को मिलता है।

कैशबैक साइटों का धंधा विशुद्ध रूप से मार्केटिंग से जुड़ा

कैशबैक साइटों की बात करें तो उनका धंधा मार्केटिंग से जुड़ा होता है। उनका कई कंपिनयों से करार होता है ताकि वे उनके प्रोडक्ट्स या सेवाओं को बेच सकें।

अपनी वेबसाइट या ऐप पर होने वाली हर बिक्री पर उन्हें एक तय कमीशन मिलता है, जो संबंधित पार्टनर कंपनी उन्हें देती है।

कैशबैक वेबसाइटें इस कमीशन का एक हिस्सा अपने कस्टमर्स को कैशबैक के रूप में देती हैं।

ई-कॉमर्स साइटों पर कैशबैक नहीं होता है तय

वहीं, ई-कॉमर्स साइटें या डिजिटल पेमेंट कंपनियों के मामले में कैशबैक प्रतिशत कभी तय नहीं रहता है और न ही हमेशा यह कैश में दिया जाता है।

कभी-कभार यह पॉइंट्स, कूपन या वॉलेट मनी के रूप में दिया जाता है, जो उन वेबसाइटों या उनके पार्टनर की कंपनियों पर ही दिया जाता है।

डिस्काउंट बनाम कैशबैक का गणित जानें

डिस्काउंट और कैशबैक अक्सर देखने में एक जैसे ही लगते हैं, मगर ये दोनों अलग-अलग चीजें हैं।

किसी प्रोडक्ट पर डिस्काउंट शॉर्ट टर्म में उस प्रोडक्ट की बिक्री बढ़ाने के लिए दिया जाता है। लॉन्ग टर्म में डिस्काउंट से उस प्रोडक्ट की ब्रांड वैल्यू को नुकसान पहुंचता है।

ऐसे ही लॉन्ग टर्म के लिए कैशबैक ऑफर काम आता है, जिससे न केवल उस कंपनी की साख बची रहती है और अपने टारगेट कस्टमर्स के लिए फाइनेंशियल इन्सेन्टिव्स भी दे पाती हैं।

इससे कस्टमर को जहां संतुष्टि मिलती है, वहीं ब्रांड पर कस्टमर्स का भरोसा भी बढ़ता है।

कैशबैक के पीछे का मनोविज्ञान भी समझना जरूरी

कैशबैक को भुनाने के लिए कस्टमर बार-बार एक ही वेबसाइट पर आता है और खर्च करके चला जाता है।

बदले में उसे फिर कैशबैक मिलता है। यह चक्र चलता ही रहता है। इससे कस्टमर कंपनी के साथ लंबे समय तक बना रहता है और कंपनी अपनी सेल बढ़ाने के लिए दूसरी रणनीतियों पर काम करती है।

कैशबैक की शर्तें भी बढ़ाती हैं प्रोडक्ट की सेल

कैशबैक के लिए अक्सर कुछ शर्तें होती हैं। जैसेकि अगर आप 1500 रुपए की खरीदारी करते हैं तो ही कैशबैक मिलेगा।

इससे कम की खरीदारी पर कोई रिवॉर्ड नहीं मिलेगा। इससे आप जरूरत न होते हुए भी 1500 रुपए से ज्यादा की खरीदारी कर लेते हैं।

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