सेहतनामा-बच्चा शैतानी करता है या है बिगड़ैल:क्लास या किसी काम में मन नहीं लगता; कहीं ये ADHD तो नहीं, कैसे करें बचाव-जानें

5 महीने पहलेलेखक: राजविक्रम
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बच्चे तो धमा-चौकड़ी मचाने वाले होते ही हैं। दिनभर एक कोने से दूसरे कोने तक भागते रहना, दुनिया भर की बातें करना, मन में कुछ भी बड़बड़ाते रहना, चिल्लाना ये सब तो उनके जन्मसिद्ध अधिकार जैसे हैं।

लेकिन बच्चों में ऐसे ही कई लक्षण एक न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर की वजह से भी हो सकते हैं। जिसे अटेंशन डिफिशिएंसी हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD) कहते हैं। दिमाग में जब न्यूरॉन विकसित हो रहे होते हैं तो उनमें कुछ गड़बड़ी की वजह से ये दिक्कतें हो सकती हैं। जिसमें बच्चों में किसी काम में ध्यान न लगा पाना, गुस्सा करना और दिनभर भागते रहना जैसे आम लक्षण दिखते हैं।

अक्सर पेरेंट्स इसे बच्चों की लापरवाही समझ लेते हैं। उन्हें लगता है कि बच्चा जान-बूझकर पढ़ाई से बचने के लिए ये सब कर रहा है। लेकिन आज दुनिया भर के वैज्ञानिक और न्यूरोलॉजिस्ट ADHD को एक न्यूरोडेवलपमेंटल कंडीशन मानते हैं। यानी इस कंडीशन से जूझ रहे बच्चे जानबूझकर लापरवाही नहीं करते, उन्हें सच में बड़ों की मदद की ज्यादा जरूरत होती है।

और ये कोई बहुत रेयर कंडीशन नहीं है। सेंटर फॉर डिजीज प्रिवेंशन एंड कंट्रोल के मुताबिक अकेले अमेरिका में 11% बच्चे ADHD से जूझ रहे हैं। वहीं दुनिया भर में लगभग 7.2% बच्चे इससे परेशान हैं। सेज जर्नल में छपी एक रिसर्च के मुताबिक भारत में ये आंकड़ा 1.6-14% तक हो सकता है। मतलब दुनिया में हर 100 में से 7 बच्चों को इससे निपटने के लिए मदद की जरूरत है।

दिल्ली वर्ल्ड पब्लिक स्कूल, अजमेर की साइकोलॉजिकल काउंसलर स्तुति एंथनी बताती हैं कि ये कंडीशन बच्चों की लर्निंग को भी प्रभावित कर सकती है, इसलिए इस पर ध्यान देना जरूरी है। तो आइए आज जानते हैं कि ADHD के क्या संकेत हो सकते हैं और क्या हम खुद से इसका पता लगा सकते हैं?

क्या घर पर ही ADHD का पता चल सकता है?

ADHD के साथ एक दिक्कत ये है कि इसके सभी संकेत सामान्य से दिखते हैं। बचपन में खुद से बैठकर पढ़ाई करने का मन शायद ही किसी बच्चे का करता हो। लेकिन कुछ बच्चे अलग होते हैं जो चाहकर भी किसी काम में ध्यान नहीं लगा पाते।

स्तुति बताती हैं कि क्लास में बैठना या किसी लंबे प्रोग्राम में एक जगह शांत बैठना इनके लिए मुश्किल होता है। हर वक्त एक जगह से दूसरी जगह भागते रहना, ज्यादा देर एक जगह बैठ कर शांति से न खेलना, सवाल खत्म होने से पहले ही जवाब दे डालना और धैर्य न रहना ये सब ADHD के संकेत हो सकते हैं।

लेकिन चूंकि ये कंडीशन न्यूरोडेवलपमेंटल है, इसलिए खुद से इसकी जांच नहीं की जा सकती है। इसके लिए साइकोलॉजिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट जैसे एक्स्पर्ट्स की जरूरत होती है। जो टेस्ट के आधार पर ADHD का पता लगाते हैं।

हालांकि, इसमें घबराने की कोई बात नहीं है। अक्सर ADHD बड़े होने पर ठीक हो जाता है। लेकिन बचपन में बच्चे इसकी वजह से पढ़ाई में पिछड़ न जाएं, इसके लिए खास ख्याल रखने की जरूरत है।

इन वैज्ञानिक मानकों के आधार पर एक्सपर्ट ADHD का पता लगा सकते हैं-

  • समय-समय पर परफॉर्मेंस टेस्ट
  • बिहेवियर पर नजर
  • न्यूरो साइकोलॉजिकल टेस्ट
  • IQ टेस्ट
  • साइकोलॉजिकल इंटरव्यू
  • प्रश्नोत्तरी

कैसे रखें ख्याल

ये कंडीशन बच्चों के स्कूल शुरू करने से पहले भी हो सकती है। उनकी लर्निंग पर असर न पड़े इसलिए समय से ADHD का पता लगाना जरूरी हो जाता है। बस एक बात ध्यान रखने की जरूरत है कि अपना बच्चा अक्सर सभी को शैतान लगता है।

कई बार पेरेंट्स को लगता है कि हमारे बच्चे का ही मन कहीं नहीं लगता, वही सबसे ज्यादा लापरवाह है। मतलब ये कि अपने बच्चे के लिए सबका एक पर्सनल बायस होता है। वो उसे हमेशा ज्यादा या कम आंकते हैं।

इसलिए कोई चाह कर भी अपने बच्चे का सही आकलन नहीं कर सकता। ऐसे मामलों में एक्सपर्ट की मदद लेना जरूरी होता जाता है।

1. सबसे पहले तो पेरेंट्स ADHD के बारे में जानें-समझें कि ये क्या होता है इसमें क्या दिक्कतें होती हैं। फिर इसके बारे में बच्चे को बताएं, उसे समझाएं कि खेलना-कूदना जरूरी है तो पढ़ना भी जरूरी है। ये भी ध्यान रखें कि वो जानबूझकर ये नहीं करते, इसलिए उन पर गुस्सा करके या चिल्ला कर आप उन्हें नहीं समझा सकते। उन्हें समय दें और उनकी मदद करें।

2. कई बार पेरेंट्स को लगता है कि अपने बच्चे के बारे में उनसे ज्यादा कौन जानता होगा। वो अपने बच्चे की परेशानी समझने के लिए खुद ही सक्षम हैं। लेकिन जब अपने बच्चे के बुखार का इलाज खुद से नहीं किया जाना चाहिए तो उनकी लर्निंग एबिलिटी का इलाज घर पर क्यों? इसलिए स्कूल काउंसलर, टीचर और एक्स्पर्ट्स से मदद लें। बच्चे की परेशानी समझें और उसे सपोर्ट करें।

3. आखिर में सीखना-समझना हर बच्चे के लिए अलग मसला है। ADHD से परेशान बच्चे ध्यान नहीं लगा पाते लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि उनकी सीखने की क्षमता कम है। इसलिए उन्हें दूसरे तरीकों से सिखाने की कोशिश करें। खेल-खेल में नंबर या एल्फाबेट सिखाएं। और हिसाब रखें कि क्या आपके बच्चे के लिए काम करता है और क्या नहीं।

बच्चों को समझना कोई आसान काम तो है नहीं। हमें ये भी समझना होगा कि पेरेंट्स तो सिर्फ 1-2 बच्चों से ही डील करते हैं। उनके लिए बच्चे की हर जरूरत को समझना मुश्किल हो सकता है। इसलिए एक्सपर्ट्स की मदद जरूरी है। जो हजारों बच्चों से बात करते हैं उन्हें समझते हैं। और जानते हैं कि बच्चों के मामले में क्या सही है और क्या नहीं।

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