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- The Religious Leader Dalai Lama Has Said That Praying In Times Of Crisis Is Not Enough, As Far As Possible, Everyone Should Fulfill His Obligation
कोरोना से मुकाबला:दलाई लामा ने कहा- संकट की घड़ी में प्रार्थना करना पर्याप्त नहीं, जहां तक हो सब अपने दायित्व का निर्वाह करें
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कोरोना संक्रमण को लेकर बौद्ध धर्मगुरू दलाई लामा ने एक बयान जारी किया है। इसमें उन्होंने कहा- संकट की इस घड़ी में प्रार्थना करना मात्र पर्याप्त नहीं है, जहां तक संभव हो सब लाेगों को अपने दायित्व का निर्वाह करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कभी-कभी मेरे मित्र मुझसे कहते हैं कि अपनी “जादुई शक्तियों” का प्रयोग कर इस जगत की समस्याओं को दूर किजिए। मैं हमेशा उनसे यही कहता हूं कि दलाई लामा के पास कोई जादुई शक्तियां नहीं हैं। यदि ऐसा होता तो मेरे पैरों में दर्द और गले में खराश नहीं होती। हम सब मनुष्य के रूप में एक समान हैं, तथा भय, आशा और अनिश्चितताओं का समान रूप से अनुभव करते हैं।
समस्या का समाधान खोजना चाहिए
उन्होंने कहा- बौद्ध दर्शन के अनुसार प्रत्येक प्राणी दुःख एवं रोग, बुढ़ापा और मृत्यु की सच्चाइयों से परिचित है। मनुष्य होने के नाते हम सब में यह क्षमता है कि हम अपनी बुद्धि-विवेक का प्रयोग कर क्रोध, घबराहट एवं लोभ से विमुक्त हो जायें। हाल के वर्षों में मेरा “भावनात्मक अशस्रीकरण” पर ज़ोर रहा है, जिसका तात्पर्य है कि हम ऐसा प्रयत्न करें जिससे भय और रोष के भ्रम से बाहर निकलकर वस्तुस्थिति को यथार्थ और स्पष्ट रूप में देख सकें। यदि समस्या का समाधान है, तो हमें उसे ढूंढ़ने की कोशिश करनी चाहिए, और यदि नहीं है, तो हमें उसके बारे में सोचकर समय नष्ट नहीं करना चाहिए।
दलाई लामा ने कहा कि जिस दिन से वुहान शहर में कोरोना वायरस फैलने का समाचार प्राप्त हुआ तब से मैं चीन तथा अन्य देशों के मेरे भाईयों एवं बहनों के लिए प्रार्थना कर रहा हूँ। हम देख सकते हैं कि कोई भी इस वायरस से प्रतिरक्षित नहीं है। हम सब अपने प्रियजनों एवं भविष्य तथा वैश्विक एवं व्यक्तिगत अर्थव्यवस्था दोनों को लेकर आशंकित हैं। चिकित्सकों एवं नर्सों द्वारा अनुभवजन्य विज्ञान के साथ मिलकर इस स्थिति को नियंत्रित करने तथा भविष्य में ऐसे सम्भावित खतरों से रक्षा करने के प्रयासों को देखकर हमें आश्वस्त रहना चाहिए।
एक दूसरे से अलग नहीं हम
उन्होंने कहा कि यह महामारी एक चेतावनी स्वरूप है जो हमें यह सीख दे रही है कि हम सामूहिक रूप से वैश्विक प्रतिक्रिया के द्वारा ही इस अभूतपूर्व विशालकाय चुनौती का सामना कर सकते हैं। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति पीड़ा से मुक्त नहीं है, इसलिए उन लोगों का अधिकाधिक मदद करना हैं जिनका कोई घर, जिविकोपार्जन का साधन और परिवार नहीं हैं। यह संकट हमें बता रहा है कि हम अलग-अलग रहने पर भी एक दूसरे से अलग नहीं हैं। इसलिए, हम सबका यह कर्तव्य है कि हम करुणापूर्वक दूसरों की मदद करें।
सामाजिक दूरी जरूरी
एक बौद्ध होने के नाते मैं अनित्यता (परिवर्तनशीलता) के सिद्धांत पर विश्वास करता हूँ। जैसा कि मैंने अपने जीवनकाल में अनेक युद्ध और भयानक खतरों को समाप्त होते देखा है, अन्ततः यह विषाणु भी समाप्त हो जायेगा। हमने इससे पहले भी कई बार वैश्विक समुदाय का पुनर्निर्माण किया है उसी तरह इस बार भी करेंगे। अनिश्चितता के इस घड़ी में यह महत्वपूर्ण है कि विभिन्न लोगों द्वारा किये जा रहे रचनात्मक प्रयासों में हम आशा और विश्वास बनाये रखें।