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पति करे टॉर्चर तो दूसरी पत्नी नहीं कर सकती शिकायत:क्या है हिंदू मैरिज एक्ट, 4 सिचुएशन में शादी होगी शून्य

9 महीने पहलेलेखक: विदुषी मिश्रा
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पिछले दिनों कर्नाटक हाईकोर्ट का एक फैसला चर्चा में रहा। जहां एक व्यक्ति की दूसरी पत्नी ने IPC की धारा 498ए के तहत शिकायत दर्ज की थी और कोर्ट ने पति की सजा को रद्द कर दिया।

इस फैसले ने बहुत से लोगों को कंफ्यूज कर दिया। इसी दुविधा को दूर करेंगे आज जरूरत की खबर में। साथ ही ये समझेंगे कि धारा 498 ए क्या है और दूसरी शादी होने पर महिला को क्या अधिकार मिलते हैं।

सवाल: कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले वाला केस क्या था?
जवाब:
दरअसल इस केस में शिकायत करने वाली महिला ने दावा किया था कि वह कंथाराजू की दूसरी पत्नी है। दोनों पांच साल साथ रहे, उनका एक बेटा भी है।

इसके कुछ साल बाद वह पैरालाइज्ड हो गई और कंथाराजू ने उसको परेशान करना शुरू कर दिया। शिकायत में क्रूरता करने का आरोप लगाया गया। घर से बाहर निकालने और आग में जलाने की भी धमकी दी।

जिसके चलते कंथाराजू की दूसरी पत्नी ने पति के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में शिकायत दर्ज की। इसके बाद 2019 में ट्रायल कोर्ट ने कंथाराजू को दोषी ठहराया और सजा देने का एलान किया था।

कंथाराजू ने कोर्ट के इस फैसले को कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी। जिसके बाद कोर्ट ने दोनों पक्षों और सबूतों को सुनने के बाद कहा कि दूसरी बीवी पति और ससुराल वालों पर क्रूरता के लिए धारा 498ए का इस्तेमाल नहीं कर सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि निचली अदालत ने फैसले में गलती की है।

सवाल: वाकई दूसरी पत्नी कानून की मदद घरेलू हिंसा के मामले में नहीं ले सकती?
जवाब:
हां। दूसरी पत्नी को इसका अधिकार नहीं है। हिंदू मैरिज एक्ट में दूसरी शादी करने का प्रावधान नहीं है। इसे अमान्य बताया गया है।

तीन शर्तों पर दूसरी शादी मान्य होती है-

  • पति या पत्नी का तलाक हो गया है।
  • पति या पत्नी में सें किसी की डेथ हो गई हो।
  • पहली शादी से अलग होने का लिखित प्रूफ हो।

सवाल: हिंदू विवाह अधिनियम या हिंदू मैरिज एक्ट क्या है?
जवाब:
हिंदू मैरिज एक्ट 1955 में लागू हुआ था। ये एक्ट हिंदूओं के अलावा बौद्ध और जैन धर्म पर भी अप्लीकेबल है।

नोट: ये देश में रहने वाले उन सभी लोगों पर भी लागू होता है जो मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी नहीं हैं।

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 5 के अंतर्गत किन्हीं दो हिन्दूओं के बीच शादी संपन्न होने के लिए जरूरी शर्तें हैं। जिन्हें नीचे लगे क्रिएटिव से समझते हैं-

सवाल: मौजूदा मामले में महिला ने शिकायत धारा 498 ए के तहत दर्ज कराई। ये धारा 498 ए क्या है?
जवाब:
अगर किसी महिला का पति या पति का रिश्तेदार उसके साथ क्रूरता करता है तो धारा 498ए के तहत शिकायत दर्ज कराई जाती है।

इसके तहत दो तरह के मामले शामिल हैं।

एक दहेज को लेकर उत्पीड़न

दूसरा किसी अन्य वजह से मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न है।

सवाल: क्या हिंदू धर्म में लड़का या लड़की दो शादियां नहीं कर सकते हैं?
जवाब:
बिल्कुल नहीं। हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत बिना तलाक के दूसरी शादी नहीं की जा सकती है। भारतीय दंड संहिता यानी IPC की धारा- 494 के तहत एक पत्नी के रहते दूसरी शादी करने पर क्रिमिनल ऑफेंस का केस बनता है।

सवाल: अगर पहली पत्नी जिंदा है और उसे तलाक दिए बगैर पति दूसरी शादी कर लेता है, तो उस शादी को क्या कहते हैं?
जवाब:
इसे द्विविवाह प्रथा यानी बाइगैमी कहते हैं।

सवाल: बाइगैमी यानी द्विविवाह प्रथा पर भारत में क्या कानून है?
जवाब:
हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के मुताबिक, दूसरी शादी लीगल नहीं मानी जाएगी।

अगर पति या पत्नी के जिंदा रहते हुए पति-पत्नी में से कोई भी दूसरी शादी कर लेता है तो इस शादी को कानून के अंदर कोई मान्यता नहीं मिलेगी।

इसका मतलब शादी नल एंड वॉयड यानी शून्य हो जाएगी।

सवाल: शादी शून्य होने का क्या मतलब होता है?
जवाब:
शादी शून्य होने का मतलब शादी के रिश्ते का पति-पत्नी के लिए कोई मतलब नहीं रह जाता है। इसमें गुजाराभत्ता से कोई लेना-देना नहीं होता है।

सवाल: शून्य शादी तलाक से कैसे अलग होती है?
जवाब:
तलाक होने के बाद पति और पत्नी दोनों की कंडीशन के हिसाब से गुजाराभत्ता, बच्चों की कस्टडी और दोनों के जीवन से जुड़े दूसरे फैसले होते हैं। जबकि शादी शून्य होने पर कोई मतलब नहीं रहता है।

सवाल: शादी किन सिचुएशन में शून्य हो सकती है?
जवाब:
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के सेक्शन 11 और 12 में चार सिचुएशन बताई गई हैं जिनके होने पर शादी को शून्य डिक्लेयर किया जा सकता है। नीचे लगे क्रिएटिव से समझते हैं…

सवाल: अगर पति-पत्नी अलग रह रहे हैं तो क्या वो बिना तलाक लिए दूसरी शादी कर सकते हैं?
जवाब:
नहीं, अलग रहने के बाद भी बिना तलाक के दूसरी शादी नहीं की जा सकती है। अगर कोई शादीशुदा व्यक्ति अपने पति या पत्नी के जिंदा रहते बिना तलाक के दूसरी शादी करता है तो ऐसी शादी को शून्य माना जाता है। उसे भारतीय दंड संहिता के तहत 7 साल की जेल और जुर्माना देना पड़ सकता है।

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