कम हुई नैनी झील की गहराई, अस्तित्व पर संकट के आसार

पिछले वर्ष नवंबर में इसरो की टीम ने झील का परीक्षण किया था, 10 फरवरी को इसकी रिपोर्ट नैनीताल जिला प्रशासन को सौंपी गई है

By Varsha Singh

On: Tuesday 11 February 2020
 
Photo: Subhojit

नैनी झील की मौजूदा स्थिति वैज्ञानिकों के लिए चिंता की वजह बनी हुई है। नैनीताल में चल रहे अंधाधुंध निर्माण कार्यों के चलते झील में गाद का स्तर तेजी से बढ़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद शहर में बहुमंज़िला इमारतें बन रही हैं जो झील की सेहत के लिए नुकसानदेह हैं। अब झील के संरक्षण में तकनीकी मदद के लिए संयुक्त राष्ट्र विकास परिषद आगे आया है। विशेषज्ञ कहते हैं कि जब तक मूल समस्या हल नहीं होती, नैनीताल की वहन करने की क्षमता से अधिक हो रहे निर्माण कार्यों पर रोक नहीं लगती, नैनी झील को उसके पुराने स्वरूप में लौटाना संभव नहीं होगा।  वे यहां के दूसरे महत्वपूर्ण तालों को लेकर भी अंदेशा जताते हैं।

नैनी झील के संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र विकास परिषद (यूएनडीपी) ने झील का वैज्ञानिक और प्रमाणिक डाटा उपलब्ध कराने को कहा था। जिसके बाद जिला प्रशासन ने इसरो से झील का आंतरिक प्रोफाइल तैयार कराया। पिछले वर्ष नवंबर में इसरो की टीम ने झील का परीक्षण किया था। 10 फरवरी को इसकी रिपोर्ट नैनीताल जिला प्रशासन को सौंपी गई है। रिपोर्ट में झील की अधिकतम गहराई में कमी आई है। कुछ जगहों पर पानी की गुणवत्ता भी कमतर पायी गई है।

नैनीताल के जिलाधिकारी सविन बंसल ने बताया कि इसरो के वैज्ञानिकों ने नैनी झील की 78 हजार बिन्दुओं की गहराई मापते हुए कन्टूर लेक प्रोफाइल तैयार की। झील की न्यूनतम गहराई 4-7 मीटर तक और अधिकतम गहराई 24.6 मीटर पायी गई। झील की औसतन गहराई 9 मीटर है। इससे पहले प्रदेश सिंचाई विभाग ने वर्ष 2016 में झील की अधिकतम गहराई 27 मीटर के करीब आंकी थी। झील के पानी का टीडीएस (टोटल डिसॉल्व सॉलिड) 300-700 मिलीग्राम/लीटर मिला है। पानी में अधिकतम डिजॉल्व्ड ऑक्सीजन 7.5 और न्यूनतम 6 से 7 मिलीग्राम/लीटर पाया गया।

इसरो से मिले नतीजों के आधार पर यूएनडीपी को प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है। झील के संरक्षण के लिए यूएन की ओर से वित्तीय और तकनीकी मदद की बात कही गई है। जिलाधिकारी ने बताया कि करीब 55 लाख रुपए के प्रोजेक्ट के एमओयू पर जल्द हस्ताक्षर होंगे। झील के दोनों छोर तल्लीताल और मल्लीताल पर पानी की गुणवत्ता परखने के लिए सेंसर लगाए जाएंगे। लोगों को झील के पानी की जानकारी देने के लिए तल्लीताल के पास एक एलईडी मॉनीटर भी लगाया जाएगा। रुड़की के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी से झील के आंतरिक जलस्रोतों के सर्वेक्षण की भी तैयारी चल रही है।

नैनीताल नगर पालिका नैनीझील से हर रोज करीब 50 किलो कचरा निकालती है। पिछले 6 महीने में झील से 90 क्विंटल कचरा निकाला जा चुका है। नैनीझील के चारों ओर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं ताकि झील में कचरा डालनेवालों की पहचान की जा सके।

कुमाऊं विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक प्रोफेसर बीएस कोटलिया कहते हैं कि नैनी झील अलार्मिंग स्थिति में है। जब झील बनी तब से अब तक उसमें 20 मीटर तक गाद भर गया है। सिल्टेशन रेट यही रहा तो झील के अस्तित्व पर संकट आ जाएगा। नैनीताल में सीमेंट के सड़कों के जाल के चलते बारिश का पानी नीचे नहीं रिसता। यहां ईंटों की सड़क होनी चाहिए, ताकि पानी रिसकर झील में जाए। वह कुछ नाराज भी होते हैं कि सरकार वैज्ञानिकों की बात नहीं सुनती। नैनीताल के बलियानाला को लेकर भी वर्ष 2012 में रिपोर्ट दी थी कि यदि जरूरी कदम नहीं उठाएंगे तो मुश्किल हो सकती है। वर्ष 2018 में बलियानाला में भूस्खलन से बहुत नुकसान हुआ। इसका ट्रीटमेंट अब तक नहीं हो सका है।

कुमाऊं विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अजय सिंह रावत नैनीताल झील के संरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जा चुके हैं। 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने नैनी झील और नैनीताल के पर्यावरण को लेकर ग्रुप हाउसिंग और बहुमंज़िला इमारतों के निर्माण पर रोक लगाई थी। वर्ष 2005 में एक बार फिर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अंतरिम प्रार्थना पत्र डाला। जिसके बाद नैनी झील की सेहत सुधारने के प्रयास तेज किये गये। झील में ऑक्सीजन डाला  गया। साथ ही झील की इकोलॉजी पर बुरा असर डालने वाली मछलियों को हटाकर महासिर, मिरर सार्क जैसी मछलियां डाली गईं।

प्रो अजय कहते हैं कि इससे झील की स्थिति तो सुधरी, लेकिन जिला प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद ग्रुप हाउसिंग पर प्रतिबंध नहीं लगाया। नैनीताल में अंधाधुंध निर्माण कार्य चल रहे हैं जबकि लेक डेवलपमेंट अथारिटी ने वर्ष 2009 में उत्तराखंड सरकार को रिपोर्ट दी थी कि नैनीताल की वहनीय क्षमता पूरी हो चुकी है। अब यहां और निर्माण नहीं होने चाहिए। नैनीताल की सबसे ऊंची चोटी चाइना पीक से ठीक नीचे 400 कमरों की इमारत बन रही है। उसके नज़दीक ही अर्ल्स कोर्ट कम्पाउंड में ग्रुप कम्पाउंडिंग चल रही है।

नैनीताल में दो मंज़िल से ज्यादा ऊंची इमारत पर प्रतिबंध है। लेकिन विशाल थियेटर पांच मंजिला इमारत है। वहां एक बडा मॉल बनाने की तैयारी है। ये जगह जिला जज और डीएम के ऑफिस से बिलकुल लगी हुई है।

नैनी झील के 60 फीसदी पानी का स्रोत माना जाने वाला आर्द्र भूमि सूखाताल के पास भी निर्माण कार्य चल रहे हैं। नैनीताल में सीवर लाइन्स नहीं हैं। वर्ष 1880 के बड़े भूस्खलन के बाद बनाए गए 79 किलोमीटर लंबे नाले हैं। जो झील के कैचमेंट एरिया में हैं। प्रोफेसर अजय कहते हैं कि निर्माण का सारा मलबा इन्हीं नालों में उड़ेला जाता है, जो अंतत झील में जाता है।

प्रोफेसर अजय बताते हैं कि वर्ष 2001-02 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने राज्य सरकारों को कुछ हिल स्टेशन को इको सेंसेटिव ज़ोन घोषित करने के लिए कहा था। महाराष्ट्र के माथेरान और राजस्थान के माउंट आबू इको सेंसेटिव ज़ोन बन गए। यदि तत्कालीन उत्तराखंड सरकार ने नैनीताल को इको सेंसेटिव ज़ोन बनाया होता तो शायद यहां पर्यावरण के लिहाज से टाउन प्लानिंग होती।

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