Rajgir Malmas Mela 2023 : यहां गाय की पूंछ पकड़कर नदी करते हैं पार, जानें क्यों लगता है मेला.. क्या है इसकी मान्यता

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Published : Jul 19, 2023, 11:32 AM IST

Updated : Jul 19, 2023, 8:39 PM IST

राजगीर में मलमास मेला
राजगीर में मलमास मेला ()

बिहार के राजगीर में लगने वाला मलमास मेला आस्था की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है. ये मलमास मेला एक महीने तक चलता है, जहां देश भर से श्रद्धालु राजगीर पहुंचते हैं और 22 कुंडों एवं 52 धाराओं में स्नान भी करते हैं. पढ़ें पूरी खबर..

देखें रिपोर्ट.

नालंदा: अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल बिहार के राजगीर में एक महिने तक आयोजित होने वाले मलमास मेला शुरू हो गया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मेले का उद्घाटन किया. उसके बाद नीतीश ने ब्रह्म कुंड में पूजा अर्चना भी की. राजगीर में मलमास मेला 16 अगस्त तक चलेगा. ऐसी मान्यता है कि अगले एक महीने तक यहां 33 कोटी देवी-देवता प्रवास करेंगे.

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राजगीर में मलमास मेला शुरू : बता दें कि मलमास मेले को राजकीय मेला का दर्जा मिला हुआ है. यहां एक महीने तक चलने वाले मलमास मेला में लाखों श्रद्धालुओं के आने की संभावना है और उसी को ध्यान में रखकर सरकार ने तैयारी भी पूरी की है. कोरोना के समय मलमास मेला पर भी असर पड़ा था. मेला का आयोजन नहीं हुआ था, लेकिन अब राजगीर में मलमास मेला को लेकर चहल पहल है और बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं.

पहले दिन ध्वजारोहण के साथ शुरुआत : इससे पहले मंगलवार को राजगीर के सिमरिया घाट के फलाहारी बाबा ध्वजारोहण कर मेले का शुभारंभ किया था. हर साल की तरह इस बार भी 22 कुंड, 52 धारा और 32 मंदिरों की पूजा अर्चना की गई. साथ ही 33 कोटि देवी देवताओं का आह्वान किया गया. इस दौरान सभी साधु संत मौजूद रहे. साथ ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु भी जुटे थे.

क्या है मेले की मान्यता : मान्यता है कि सनातन धर्मावलंबियों के सभी 33 कोटि देवी देवता मलमास मेला के दौरान राजगीर में प्रवास करते हैं. इसमें सिर्फ एक काग (कौआ) देवता इसके आसपास नजर नहीं आते हैं. बता दें कि मलमास (अधिमास) में सभी शुभ कार्यो पर रोक लगी रहती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दौरान यहां प्रवास पर आए सभी देवी-देवता को एक ही कुंड में स्नान करने में परेशानी हुई, जिसके बाद ब्रह्मा ने यहां 22 कुंड और 52 जल धाराओं का निर्माण किया था.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX.

गाय की पूंछ पकड़कर नदी करते हैं पार: राजगीर में अधिक मास का महत्व पितरों के लिए अत्याधिक माना जाता है. वो भी सिर्फ और सिर्फ राजगीर में ही होता है. इस दौरान जिनका निधन होता है. उनका पिंडदान पुरुषोत्तम मास में ही किया जाता है. वहीं पितरों (हमारे पूर्वज जिनका निधन हो गया हो) की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान तर्पण विधि और एवं श्राद्ध कर्म वैतरणी नदी पर किए जाते हैं.

"अधिक मास में जिनका निधन होता है, उनका पिंडदान पुरुषोत्तम मास में ही किया जाता है. इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, तर्पण विधि और श्राद्ध कर्म आदि वैतरणी नदी पर किए जाते हैं." - जगदीश यादव, पुजारी, पुजारी वैतरणी घाट

वैतरणी नदी का है महत्वपूर्ण उल्लेख: श्री राजगृह तीर्थ पुरोहित कुंड रक्षार्थ पंडा कमेटी के सचिव विकास उपाध्याय ने बताया कि वायु पुराण में इसका वर्णन है. भारतीय पौराणिक धर्मग्रंथों में खासकर राजगीर के पुरुषोत्तम मास मेले में भव सागर पार लगाने वाली नदी वैतरणी का महत्वपूर्ण उल्लेख है. ऐसी मान्यता है कि पुरुषोत्तम मास मेले के दौरान गाय की पूंछ पकड़कर वैतरणी नदी पार करने पर मोक्ष व स्वर्ग की प्राप्ति होती है. वहीं जाने अनजाने में हुए पाप से मुक्ति के साथ-साथ सहस्त्र योनियों में शामिल नीच योनियों से निजात मिल जाता है.

कुंड में स्नान करते लोग
कुंड में स्नान करते लोग

क्यों लगता है मेला : नालंदा जिले में स्थित राजगीर में हर तीन साल पर मलमास मेला का आयोजन होता है. मलमास को हम अधिक मास के नाम से भी जानते हैं. सनातन धर्म में इसका विशेष महत्व है. मलमास इस बार 18 जुलाई से है जो कि अगले एक महीने तक चलेगा. राजगीर में लगने वाले मलमास मेले में देश भर के कोने-कोने से साधु संत का आगमन होता है. इस दौरान शाही स्नान का विशेष महत्व होता है. मेले के दौरान विभिन्न प्रकार के झूले और थिएटर लगाए जाते हैं. मनोरंजन के साथ-साथ खानपान की व्यवस्था भी होती है. इससे स्थानीय लोगों की आमदनी भी होती है.

Last Updated :Jul 19, 2023, 8:39 PM IST
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