प्राइम टीम, नई दिल्ली। बीते डेढ़ साल से 4.5 फीसदी के ऊपर चल रही खुदरा महंगाई की दर मई में आखिरकार 4.25% पर आ गई। खाने के तेल की कीमतों में 16.01 फीसदी और सब्जियों के दाम में आई 8.18 फीसदी की गिरावट इसका मुख्य कारण रही। हालांकि, अनाज के दाम अब भी ऊपर बने हुए हैं। मई में अनाज की महंगाई दर 12.65% दर्ज हुई। गेहूं पर स्टॉक लिमिट लगने के बाद आने वाले महीनों में अनाज की महंगाई में भी कमी आने की उम्मीद है। हालांकि इस मुद्दे पर विशेषज्ञों की राय अलग-अलग है।

खुदरा महंगाई दर यानी सीपीआई को मापने वाला उपभोक्ता मूल्य सूचकांक छह मुख्य घटकों फूड एंड बेवरेजेस, हाउसिंग, फ्यूल एंड लाइट, क्लोदिंग एंड फुटवेयर, पान टोबैको एंड इनटॉक्सिकेंट और मिसलेनियस से मिलकर बनता है। मिसलेनियस में शिक्षा, स्वास्थ्य, ट्रांसपोर्ट, मनोरंजन, पर्सनल केयर, घरेलू वस्तुएं एवं सेवाएं आती हैं।

45 फीसदी वेटेज वाला फूड एंड बेवरेजेस सेगमेंट सीपीआई पर सबसे अधिक असर डालता है। इसमें भी सबसे अधिक 9.67 फीसदी वेटेज अनाजों का है। सब्जियां 6.04% वेटेज के साथ तीसरे स्थान पर हैं, जबकि खाने के तेल की हिस्सेदारी 3.56% है। इन दोनों मदों में महंगाई की दर ऋणात्मक होने के चलते खाद्य महंगाई में कमी आई और नतीजतन खुदरा महंगाई दर करीब दो साल के निचले स्तर पर आ गई।

मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य अर्थशास्त्री निखिल गुप्ता कहते हैं, खुदरा महंगाई दर हमारे पूर्वानुमान 4.5% से थोड़ा कम है। यह काफी हद तक भोजन और आयातित वस्तुओं की कीमतों में आई कमी के चलते है। कोर महंगाई 25 महीने के निचले स्तर 5.2% पर, जबकि कोर सर्विसेज इन्फ्लेशन घटकर 35 महीने के निचले स्तर, 4.2% पर आ गई।

इस साल के शुरुआती महीने जनवरी में खुदरा महंगाई दर 6.52% थी। फरवरी से इसमें गिरावट का सिलसिला शुरू हुआ, जो मई में भी जारी रहा। जानकारों का कहना है कि आने वाले महीनों में भी महंगाई दर या तो स्थिर रहेगी या इसमें कमी ही आएगी।

राज्यवार बात करें तो भी ज्यादातर राज्यों में महंगाई 5 फीसदी से नीचे आ गई है। सिर्फ चार राज्य हरियाणा, बिहार, त्रिपुरा और मिजोरम में महंगाई दर 6 फीसदी के पार है। सबसे कम महंगाई दर छत्तीसगढ़ में है, जो एक फीसदी से भी कम (0.71%) है।

मिलवुड केन इंटरनेशनल के संस्थापक और सीईओ निश भट्ट महंगाई के आंकड़ों पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं, खुदरा महंगाई दर 25 महीने के निचले स्तर पर आ गई है। खाद्य और ईंधन की कीमतों में कमी के कारण मुख्य रूप से ये गिरावट आई है। एक अच्छा मानसून और कच्चे तेल की कीमतों में स्थिरता आने वाले समय में दिशा तय करेगी।

मांग में इजाफा होने की उम्मीद

महंगाई में कमी से अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ने की भी उम्मीद है। नाइट फ्रैंक इंडिया के निदेशक अनुसंधान विवेक राठी कहते हैं, महंगाई में आई इस कमी से उपभोक्ताओं को कुछ राहत मिलनी चाहिए और उनके विवेकाधीन खर्च में इजाफा होना चाहिए। कुल मिलाकर महंगाई के आंकड़े अच्छे रहे।

ब्याज दरों में कमी के आसार नहीं

महंगाई में गिरावट के बावजूद ब्याज दरों में कमी के आसार नहीं हैं। राठी कहते हैं, हमें उम्मीद है कि सितंबर में 4% की ओर गिरने से पहले खुदरा महंगाई दर अगले 3 महीनों तक 4.5% के आसपास बनी रहेगी। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि ब्याज दरों में कटौती का समय आ गया है। हां, ब्याज दरों में और बढ़ोतरी जरूर नहीं होगी।

महंगाई पर नियंत्रण के लिए लगी गेहूं पर स्टॉक सीमा

अब तक बेकाबू अनाज की महंगाई पर नियंत्रण के लिए ही सरकार ने गेहूं पर स्टॉक लिमिट लगा दी है। देश में गेहूं पर स्टॉक लिमिट पहली बार लगाई गई है। पिछले साल उत्पादन गिरने के कारण 13 मई को सरकार ने गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था। कमोडिटी एडवायजरी फर्म केडिया एडवाजयरी के निदेशक अजय केडिया के मुताबिक, इस बार मानसून की बारिश पर अल नीनो का असर दिखने की आशंका है। इस आशंका के चलते खाद्यान्न महंगे होने की चिंता सता रही है। यही कारण है कि सरकार ने इसे नियंत्रित करने के लिए स्टॉक लिमिट का सहारा लिया है।

हालांकि, मध्य भारत कंसोर्टियम ऑफ एफपीओ लिमिटेड के सीईओ योगेश द्विवेदी के अनुसार गेहूं पर स्टॉक लिमिट लगाने का कीमतों पर ज्यादा असर नहीं होगा। बल्कि इससे दाम और बढ़ने की आशंका बन गई है। उन्होंने कहा कि जब सरकार लिमिट लगाती है तो बाजार में यह संकेत जाता है कि उत्पादन कम है।