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Sanatan Dharma: जानें, कब और कैसे हुई सनातन धर्म की उत्पत्ति और क्या हैं इसके नियम?

Sanatan Dharma सनातन शब्द सत् और तत् शब्द से मिलकर बना है। दोनों शब्दों का अर्थ यह और वह है। इसका व्यापक उल्लेख अहं ब्रह्मास्मि और तत्वमसि श्लोक से मिलता है। इस श्लोक का अर्थ है कि मैं ही ब्रह्म हूँ और यह संपूर्ण जगत ब्रह्म है। इस सृष्टि के निर्माण के पश्चात भी ब्रह्म में न्यूनता नहीं आई है। कहने का तात्पर्य यह है कि ब्रह्म पूर्ण है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarPublished: Tue, 05 Sep 2023 03:23 PM (IST)Updated: Tue, 05 Sep 2023 03:29 PM (IST)
Sanatan Dharma: जानें, कब और कैसे हुई सनातन धर्म की उत्पत्ति और क्या हैं इसके नियम?

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क । Sanatan Dharma: सनातन धर्म में चार युगों का वर्णन किया गया है। ये क्रमशः सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग हैं। वर्तमान समय में कलयुग चल रहा है। इस युग के समापन के पश्चात सतयुग प्रारंभ होगा। ये क्रम अनवरत जारी रहेगा। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल पैदा होता है कि आखिर सतयुग से पूर्व क्या था और सनातन धर्म की उत्पत्ति कैसे हुई है ? इस विषय को लेकर दर्शन शास्त्र के जानकारों में मामूली मतभेद है। कई दार्शनिक वेद को साक्षी मानकर सनातन धर्म की गणना करते हैं। वहीं, कुछ जानकर शास्त्रों को आधार मनाते हैं। आधुनिक इतिहासकारों में सनातन धर्म की सटीक गणना को लेकर व्यापक मतभेद है। आधुनिक समय के इतिहासकार महज प्राचीन भारत के इतिहास का अध्ययन कर सनातन धर्म को समझने की कोशिश करते हैं। आइए, इसी विषय पर आज सनातन धर्म के बारे में संक्षेप में जानकारी प्राप्त करते हैं-

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सनातन धर्म क्या है ?

सनातन शब्द सत् और तत् से मिलकर बना है। दोनों शब्दों का अर्थ यह और वह है। इसका व्यापक उल्लेख 'अहं ब्रह्मास्मि और तत्वमसि' श्लोक से मिलता है। इस श्लोक का अर्थ है कि मैं ही ब्रह्म हूँ और यह संपूर्ण जगत ब्रह्म है। ब्रह्म पूर्ण है। इस सृष्टि के निर्माण के पश्चात भी ब्रह्म में न्यूनता नहीं आई है। कहने का तात्पर्य यह है कि ब्रह्म पूर्ण है। इसे ही सनातन कहते हैं। आसान शब्दों में कहें तो सत्य ही सनातन है।

अब यह सवाल मन में उठता है कि सत्य क्या है? ईश्वर, आत्मा, मोक्ष ये सभी पूर्ण और ध्रुव सत्य हैं। अतः सनातन धर्म का न आदि है और न अंत है। कहने का अभिप्राय यह है कि अनादि काल से सनातन धर्म चला आ रहा है और अनंत काल तक रहेगा। इसका न आदि और न अंत है। सनातन अनंत है। इस सत्य को ही सनातन कहा जाता है। सनातन के माध्यम से ईश्वर,आत्मा और मोक्ष का ज्ञान होता है। विज्ञान के लिए भी मृत्यु पहेली बनी है। सनातन धर्म में ईश्वर, मोक्ष और आत्मा को तत्व और ध्यान से जाना जा सकता है। इस धर्म के प्रारंभ वर्ष की गणना करना कठिन है, किंतु वर्तमान साक्ष्य के आधार पर सनातन धर्म अनंत काल से चला आ रहा है। इस धर्म का मूल सार पूजा,जप-तप,दान,सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा और यम-नियम हैं। ऐसा कहा जाता है कि देवों, ऋषि-मुनियों और यहां तक कि साधारण मनुष्य ने भी इसी मार्ग पर चलकर अपना उत्थान किया है। सनातन में ॐ को प्रतीक चिह्न माना जाता है। इस धर्म में शिव-शक्ति, ब्रह्म और विष्णु को समान माना गया है। कहने का तात्पर्य यह है कि सभी संप्रदाय के लोग सनातन को मानते हैं। इस धर्म में शास्त्रों की रचना संस्कृत भाषा में की गई है।

प्रमुख आराध्य

सनातन धर्म में त्रिदेव- ब्रह्मा,विष्णु और महेश को प्रमुख आराध्य माना गया है। भगवान शिव के बारे में कहा जाता है कि अरण्य संस्कृति में भी उनकी पूजा की जाती थी। यह वह समय था। जब मानव सभ्यता का विकास नहीं हो पाया था। कालांतर में अरण्य संस्कृति ही आगे चलकर सनातन यानी जीने का आधार बनी। उस समय से भगवान शिव को सनातन का आधार माना गया है। विज्ञान वर्तमान समय तक आत्मा की गति को समझने में असफल रहा है। हालांकि,सनातन धर्म में ऋषि-मुनियों ने ध्यान कर ब्रह्म,ब्रह्मांड और आत्मा के रहस्य को उजागर किया। वेदों में सर्वप्रथम 'मोक्ष' का वर्णन मिला है। आत्मा की गति मोक्ष है। अतः सनातन धर्म में पुनर्जन्म का विधान है।

डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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