यह सुंदर पर्वतीय नगर बढ़ती आबादी, बदलते पर्यावरण और अंधाधुंध विकास की भेंट चढ़ता जा रहा है। नैनीताल शहर के करीब पचास हजार लोग खतरे के साये में हैं। पर्यावरणविदों और भूवैज्ञानिकों का मानना है कि नैनीताल और उसके आस-पास के क्षेत्रों में पिछले छह-सात वर्षों में जिस तेजी के साथ भूस्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं, उससे नैनीताल के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है और यह सब जलवायु परिवर्तन की वजह से वर्षा के चक्र में परिवर्तन के कारण है। कभी इस क्षेत्र में अधिक वर्षा हो जाती है और कभी कम। इस साल तो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते होली के बाद अत्यधिक बारिश और बर्फबारी नैनीताल के साथ-साथ उत्तराखंड के अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में हुई।

नैनीताल के नयना पीक, बलिया नाला, गोल्फ कोर्स क्षेत्र में भूस्खलन की संभावनाएं लगातार बढ़ रही हैं। इस संबंध में वाडिया इंस्टीट्यूट देहरादून की अध्ययन रिपोर्ट के बाद उत्तराखंड की राज्य सरकार ने अब इस क्षेत्र में भूस्खलन रोकने की दिशा में प्रारंभिक रूप से कुछ कदम उठाए हैं। वाडिया इंस्टीट्यूट देहरादून के विज्ञानी डा विक्रम गुप्ता ने पिछले तीन-चार वर्षों में हिमालयी क्षेत्र का गहन अध्ययन किया था।

इस अध्ययन के मुताबिक नैनीताल, मसूरी, शिमला तथा अन्य पर्वतीय शहरों की भार वहन क्षमता काफी समय पूर्व ही समाप्त हो चुकी थी। इसके बावजूद इन पर्वतीय नगरों में विकास के नाम पर अंधाधुंध निर्माण होता रहा और आबादी का दबाव बढ़ता चला गया, जिससे नैनीताल सहित अन्य पर्वतीय नगरों का अस्तित्व खतरे में दिखाई दे रहा है।

वाडिया इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ विज्ञानी डा विक्रम गुप्ता ने इन पर्वतीय नगरों के अस्तित्व को बचाने के लिए कई महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए हैं, जिनमें पर्वतीय नगरों में सेटेलाइट टाउनशिप की स्थापना करना और इन पर्वतीय नगरों के प्रति सुनियोजित तरीके से बेहद संवेदनशील होकर कार्य करना और अवैध निर्माण पर कड़ाई से रोक लगाना, इन पर्वतीय नगरों में यात्रा अवधि के समय पर्यटकों की भीड़ को नियंत्रित करना और आवागमन को एक सीमा तक प्रतिबंधित करना, जैसे कई उपाय शामिल हैं। भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि नैनीताल तथा अन्य पर्वतीय नगरों म्ें परंपरागत तकनीक से भवनों का निर्माण किया जाना चाहिए।

नैनीताल में पानी का एक बड़ा ताल है, उसके अलावा नैनीताल के चारों ओर पानी से भरे हुए भीमताल, नौकुचियाताल, खुर्पा ताल सहित कई ताल हैं। इस पर्वतीय नगर के चारों ओर पानी के तालों के होने के कारण यह क्षेत्र और भी ज्यादा संवेदनशील हो जाता है। एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार नैनीताल की झील ही कोई आपदा आने पर 43 से 45 किलोमीटर क्षेत्र को डुबाने की क्षमता रखती है। नैनीताल में जिस तरह से भूधंसाव हो रहा है वह चिंताजनक है। नैनीताल में हनुमान वाटिका में बलिया नाले के पास 2009 से ही जमीन धंस रही है और हर साल बारिश के समय इस क्षेत्र के करीब सौ से ज्यादा परिवारों को अस्थायी तौर पर विस्थापित करना पड़ता है।

2016 में वाडिया इंस्टीट्यूट आफ जियोलाजी तथा निजी विश्वविद्यालय ग्राफिक ऐरा ने नैनीताल में धंस रही जमीन की घटनाओं पर एक अध्ययन रिपोर्ट तैयार की थी। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि नैनीताल का आधा शहर मलबे के ढेर पर बसा है, जो भूस्खलन के बाद बना था।

नैनीताल और उसके आसपास के क्षेत्रों का प्राकृतिक आपदा से गहरा नाता रहा है। 1889 में नैनीताल के वीरभट्टी और जौलीकोट में भूस्खलन के कारण इस क्षेत्र की सड़क बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई थी और नैनीताल का सड़क मार्ग से देश से संपर्क टूट गया था। उसके बाद 1898 में नैनीताल में भूस्खलन से 27 लोगों की जान चली गई थी और एक फैक्ट्री का नामोनिशान ही मिट गया था।

1924 में नैनीताल में भूस्खलन के चलते एक स्थानीय महिला समेत दो पर्यटकों की मौत हो गई थी। साथ ही कई दुकानें, पुलिस चेकपोस्ट और राजभवन का गैराज भी भूस्खलन की चपेट में आने से ध्वस्त हो गया था। अब तक नैनीताल से भूस्खलन के चलते 153 परिवारों का विस्थापन किया गया है। भूधंसाव के कारण नैनीताल का बैंड स्टैंड क्षेत्र अत्यंत संवेदनशील होने के कारण पिछले कई महीनों से बंद पड़ा है।

नैनीताल के आयुक्त दीपक रावत का कहना है कि नैनीताल के संवेदनशील क्षेत्रों का गहन अध्ययन करवाया जा रहा हैं और जल्दी ही संवेदनशील क्षेत्रों के लिए एक बड़ी कार्ययोजना बनाई जाएगी। प्राकृतिक संरक्षण के साथ ही विकास की योजनाएं बनाई जाएंगी। हाल-ही में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नैनीताल की छह पेयजल योजनाओं का शिलान्यास किया है। जिससे इस क्षेत्र के लोग लाभान्वित होंगे। 21997.75 करोड़ रुपए की परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया गया है। इन परियोजनाओं में विकास के साथ-साथ प्राकृतिक संरक्षण का पूरा ध्यान रखा गया है।