दुर्ग विकासखंड के गांव करगाडीह के किसी भी घर में किलकारी गूंजती है तो गांव के सरपंचऔर उनके सारे पंच मिलकर उस घर में जाकर पौधे गिफ्ट करते हैं। ताकि परिवार वह पौधा उस बच्चे के जन्म की खुशी में अपने आंगन में लगाए। पर्यावरण प्रेमी इस गांव के सरपंच घनश्याम गजपाल ने पहले बोरीगारका के सरपंच थे, फिर करगााडीह को राजस्व ग्राम का दर्जा दिलाया और परिसीमन के बाद इसे ग्राम पंचायत बना दिया गया। इस गांव के पहले सरपंच बने घनश्याम ने अपने पंचों के साथ हाथ में पौधे लेकर ही पद की शपथ ली और तभी से गांव को हराभरा बनाने का अभियान चल पड़ा। सरपंच ने बताया कि इन दिनों गौठान के आसपास उन्होंने पौधे लगाने की शुरुआत की। वहीं किसी भी घर नया मेहमान आने पर सभी पौधे लेकर बधाई देने पहुंचते हैं। उन्होंने कहा कि पौधे के साथ-साथ वे बेटे-बेटी में भेदभाव नहीं करने का भी संदेश देते हैं, क्योंकि पौधा कोई भी हो, उन्हें एक समान खाद-पानी देकर सींचते हैं, वैसे ही हमारे यहां बेटा और बेटी है। बिना किसी भेदभाव के दोनो ंको एक समान परवरिश मिलेगी तो वे भी आगे चलकर परिवार का नाम रोशन करेंगे। इसके साथ ही इस गांव में किसी का जन्मदिन हो या शादी की वर्षगांठ या फिर शादी जैसा शुभ कार्य या फिर किसी पूर्वज की याद में कुछ करना हो, सभी के लिए पौैधे ही पहली पसंद है।
ग्राम रिसामा की सरपंच गीता महानंद ने मात्र एक साल में ही अपनी पंचायत को सर्वश्रेष्ठ स्वच्छ पंचायत का दर्जा दिला दिया। वर्ष 2019 में सरपंच का चुनाव जीतने के बाद गीता ने सबसे पहले गांव में गंदगी को साफ करने का बीड़ा उठाया। महिला स्वसहायता समूह के जरिए डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन कराकर गांव को स्वच्छ किया। साथ ही अंडरग्राउंड नालियां बनाकर घरों से निकलने वाले पानी को सोखता तक पहुंचाया ताकि गांव का जलस्तर अच्छा रहे। इससे पहले यह पानी गांवों की गलियों में बहा करता था। गीता ने बताया कि उनके यहां चार समूह गौठान में भी काम कर वर्मी कंपोस्ट का काम कर रहे हैं। वे कहती हैं कि अगर मन में कुछ अच्छा करने की इच्छा हो तो रास्ते अपने आप बन जाते हैं। उनका कहना है कि अपने कार्यकाल में उनका प्रमुख लक्ष्य गांव की महिलाओं को कुटिर उद्योगों के माध्यम से उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है। गीता ने बताया कि उनके पहले के सरपंच ने गांव को ओडीएफ का दर्जा दिलाया और उनके कार्यकाल में गांव ओडीएफ प्लस की श्रेणी में आ गया। इस तरह गांव लगातार विकास की राह में आगे बढ़ रहा है। पंचायती राज में जब गांव के विकास के अधिकार मिलते हैं तो काम और भी आसान हो जाता है। उन्होंने बताया कि स्वच्छ गांव के लिए मिली 20 लाख की पुरस्कार राशि गांव में स्वच्छता और जल के संरक्षण संवर्धन में खर्च किए जा रहे हैं।
ग्राम पतोरा की पहचान स्वच्छ गांव के साथ-साथ दो विशेष कार्य की वजह से और भी हो गई है। इनमें पहली पहचान तो यह है कि यहां हर घर के बाहर नाम पट्टिका पर। हर घर में मुखिया का नाम महिला के नाम पर है। ग्राम पतोरा की पंचायत ने अभिनव पहल की ताकि महिला सशक्तिकरण का संदेश दिया जा सके। गांव की सरपंच अंजीता साहू ने बताया कि हमने यह निर्णय लिया कि गांव के हर घर में महिला मुखिया का नाम घर के सामने लिखेंगे। स्वाभाविक रूप से इस कदम से महिला सशक्तिकरण को मजबूती मिलेगी। महिलाओं के हाथ मजबूत होने से स्वाभाविक रूप से परिवार भी मजबूत होगा और परिवार मजबूत होने से गांव मजबूत होगा। गांव के पुरुष भी इस निर्णय से काफी खुश हैं। वहीं पतोरा राज्य का पहला गांव है जहां फिकल ट्रिटमेंट प्लांट लगाया गया है। जहां मल से सोना खाद बनाने का काम चल रहा है। इसके साथ ही गांव को राज्या का सर्वश्रेष्ठ स्वच्छ गांव भी घोषित किया गया है। मात्र एक वर्ष में ही महिला सरपंच अंजिता ने गांव को अलग पहचान दी है।