सुलखान सिंह पूर्व डीजीपी यूपी
आजकल देश में एक लहर सी चल रही है अपनी धार्मिकता साबित करने की। इसी बीच ‘सनातन धर्म’ (Sanatana Dharma), ‘हिंदू धर्म’ (Hinduism), ‘सनातनी’ (Sanatani) आदि सिक्के की तरह उछाले जा रहे हैं। इस सब प्रतिक्रिया में सबसे गौर करने वाली बात है – आक्रामकता, अहंकार, दम्भ, दूसरों के प्रति नफ़रत और ज़रा सी असहमति पर गाली-गलौज और निजी आरोप लगाना।
भारत में वेद, उपनिषद, महाभारत (Mahabharata) और रामायण (Ramayan) आदि में कहीं भी सनातन धर्म (Sanatana Dharma) अथवा हिन्दू धर्म (Hinduism) का जिक्र नहीं किया गया है। हमारे समाज में ‘धर्म’ शब्द निरपवाद रूप से ‘कर्तव्य’ के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। थोड़ा और विस्तार करके धर्म को ‘वर्णाश्रम धर्म’ के रूप में, दो श्रेणी में किया गया है –
- वर्ण धर्म – चूंकि वर्ण एक मानवशास्त्रीय (behavioural anthropology) वर्गीकरण है अतः वर्ण धर्म मनुष्य के वे कर्तव्य हैं जो समाज को एवं अन्य लोगों को प्रभावित करते हैं। उदाहरणार्थ यदि कोई व्यक्ति पुलिस में है तो विभागीय ड्यूटी ही उसका वर्ण धर्म है। इसी प्रकार किसी भी कर्तव्य को समझा जा सकता है। अगर वह व्यक्ति इस कर्तव्य का सम्यक् पालन नहीं करता है तो उसे अधर्मी, धर्मभ्रष्ट आदि कहा जायेगा।
- आश्रम धर्म – अपनी निजी अवस्थिति (आश्रम) के अनुसार व्यक्ति के कुछ निजी कर्तव्य होते हैं। उदाहरणार्थ – ब्रह्मचर्य आश्रम में विद्याध्ययन और अपने अंदर कर्मकौशल विकसित करना, ग्रहस्थ आश्रम में धन अर्जित करना और माता-पिता तथा पति/पत्नी एवं बाल-बच्चों की देखभाल एवं पालन-पोषण। इसी प्रकार वानप्रस्थ एवं संन्यास को समझा जाना चाहिए। इन आश्रम धर्मों में से ब्रह्मचर्य आश्रम तो अपरिहार्य है परन्तु शेष आश्रम वैकल्पिक हैं। इन कर्तव्यों का पालन न करने वाला भी धर्मभ्रष्ट और अधर्मी कहा जायेगा।
अपने को पहचानना, आत्म-साक्षात्कार आदि आश्रम धर्म (Ashram religion) का ही एक घटक है। यह जीवन पर्यन्त का कर्तव्य है परन्तु यह भी वैकल्पिक है। अर्थात् इसका पालन न करने वाला अधर्मी नहीं कहा गया है।
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अब आधुनिक काल में प्रयुक्त हो रहे धर्म शब्द पर चर्चा जरूरी है। धर्म शब्द अंग्रेजी शब्द Religion और अरबी/फारसी शब्द ‘मज़हब’ के लिए प्रयुक्त हो रहा है यद्यपि कि यह ग़लत है। इसके लिए कोई अन्य शब्द बनाना चाहिये था। खैर रिलीजन/मज़हब की बात करें तो भारत में रिलीजन/मज़हब कई तरह के थे इनमें से किसी को भी अधर्म नहीं कहा गया और न ही इनके अनुयाई को अधर्मी। पूजा/उपासना की दृष्टि से भारत में शैव, वैष्णव, शाक्त, स्मार्त एवं अनन्य मूर्त/अमूर्त चर-अचर की पूजा करने वाले लोग भारत में रहे हैं। किंतु ‘सनातन धर्म’ अथवा ‘हिंदू धर्म’ (Hinduism) नामक कोई धर्म नहीं रहा है। कुछ लोग फिर से कर्मकाण्ड, जातिवाद, छुआछूत, जातीय श्रेष्ठता आदि अवांछनीय बातों को धर्म के रूप में स्थापित करने पर उतारू हैं।
इस तरह की दकियानूसी स्थापित करने में ‘लोकतंत्र’ सबसे बड़ी बाधा है। इसलिए चुनाव के उद्देश्य से साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण किया गया है। उद्देश्य वही है – फिर से जातिवादी व्यवस्था स्थापित करना। इसीलिए, जो कोई भी इसके विरोध में अथवा सौहार्द की बात करता है, उसके ऊपर बहुत आक्रामक और अक्सर हिंसक प्रतिक्रिया व्यक्त की जाती है। अधिकांश/बहुसंख्यक हिन्दू समाज ही इस साज़िश का लक्ष्य है। इसलिए – सा व धा न , हो शि या र ।